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________________ ३७२ ] व्रत कथा कोष चौपाई प्रथम चार इकांतर बीस, कर पीछे बेला इकतीस । ता पीछे जु इकान्तर करे, द्वादश प्रोषध विधियुत धरे । पुन बेलो करिये हित जान, बारा वास इकान्तर ठान । पोछें इक बेलो कीजिए, इक अन्तर दश द्वय लीजिए । फिर इक बेलो कर धर प्र ेम, वसु उपवास इकतिर एम । सब उपवास प्राठ चालीस, बिच बेलो चहु गहे गरीश । दधिमुख रति करके उपवास, अंजनगिरि चहुं बेला तास । दिवस एक सो आठ मकार, बरत यहै पूरणता धार । छप्पन प्रोषध भवि मन श्रान, करे पाररणा बावन जान ! लगते करे न अन्तर पड़ े, अघ अनेक भव संचित हरे । यह व्रत १०८ दिन में पूरा होता है, जिसमें ५६ उपवास और ५२ पारणा होते हैं । यथा पूर्व दिशि - अंजनगिरिका बेला १, ताके उपवास २, पारणा १, दधिमुख के उपवास ४, पारणा ४ । रतिकर के उपवास ८, पारणा । इस प्रकार पूर्व दिशि के उपवास १४ पारणा १४ । इसी प्रकार दक्षिण के पश्चिम के और उत्तर के करे । नन्दीश्वर की भावना भावे । ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वोपे द्वापञ्चाशज्जिनलयेभ्यो नमः ' इस मन्त्र का त्रिकाल जाय करे, व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे । पञ्चालंकार व्रत कथा आषाढ़ शुक्ला पञ्चमी के दिन स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन हाथों में अभिषेक पूजा का सामान लेकर मन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, पथ शुद्ध करके भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर पञ्चपरमेष्ठि भगवान का पञ्चामृत अभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा करे, जिनवाणी व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल का यथायोग्य सम्मान करे, पंचपरमेष्ठि का अलग अलग नाम उच्चारण करके पांच अक्षतों का पुंज रखे, पुज के ऊपर पांच सुपारी, पांच पुष्प, पांच लड्डू, पांच फल आदि रखे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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