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व्रत कथा कोष
वैराग्य हो गया । इसलिये वह अपने पुत्र को राज्य देकर जंगल में चला गया। वहां एक निर्गथमुनि से दीक्षा ली और तपस्या करने लगे जिससे उनके चारों घातिया कर्मों का क्षय हो गया और केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और मोक्ष गये।
इधर वह महाबल राजा अत्यंत सुख से राज्य करता था। उसका स्वयंबुद्ध मंत्री एक दिन श्रीमंधरस्वामी के समवशरण में गया। वहां तीर्थंकर के चरणों में पजा वंदना स्तुति करके मनुष्यों के कोठ में बैठा । बहुत देर तक धर्म श्रवणकर उसके गणधर से दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना कर अपने भवान्तर पूछे । तब उन्होंने सब भवान्तर कहा और नवनारद का व्रत लेने को कहा । उस मन्त्री ने यह नारद व्रत लिया। फिर वह सबकी वन्दना कर अपने घर आया । फिर सब लोगों ने यह व्रत किया जिसके योग से आयु के अन्त में वे सब स्वर्ग गये और वहां का सुख भोगने लगे।
अथ नवग्रह व्रत कथा ___ विधि :--प्राषाढ़ कातिक फाल्गुन इस मास के कोई भी एक शुक्ला ६ से १५ तक रोज प्रातःकाल इस व्रत के करने वालों को पवित्र जल से स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहने । सब पूजा का द्रव्य लेकर मन्दिर जाकर मन्दिर की तोन प्रदक्षिणा करके ईर्यापथ शुद्धिपूर्वक भगवान को नमस्कार करें। नवग्रह जिनप्रतिमा हो तो वह अथवा चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा और नवदेवता प्रतिमा पीठ पर स्थापित करके पंचामत अभिषेक करे । आरती उतारे । एक पट्टे पर १ स्वस्तिक बनाकर उस पर पान अक्षत फल आदि रखकर मूल प्रतिमा तीर्थंकर नवदेवता आदि की अष्टद्रव्य से पूजा करे । तत्पश्चात् नवग्रह की पृथक् पृथक् पूजा करे ।
उस मन्त्र का क्रम इस प्रकार है :(१) ॐ ह्रीं प्रादित्यमहाग्रहसहित पद्मप्रभजिनदेवाय जलं निर्वपा० एवं
गंधादिष्वपि योज्यम् । (२) ॐ ह्रीं सोममहाग्रह सहित चंद्रप्रभजिनदेवाय जलं । (३) ॐ ह्रीं कुजमहाग्रह सहित वासुपूज्य जिनदेवाय जलं । (४) ॐ ह्रीं बुधमहाग्रह सहित मल्लिनाथ जिनदेवाय जलं ।