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प्रत कथा कोष
इस मन्त्र का १०८ पुष्पों से जाप करे । सहस्र नाम का पाठ करे । पुष्पदंत चरित्र पढ़ । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे । एक पात्र पर नव पान रखकर उस पर अष्टद्रव्य व नारियल रखकर महार्घ्य तैयार करे व जयमाला बोलकर चढ़ावे । आरती करे। उस दिन उपवास करके धर्मध्यान पूर्वक काल बितावे, दूसरे दिन सत्पात्र को आहार देकर आहार दान करे।
___ इस प्रकार यह व्रत नव गुरुवार करे और कार्तिक अष्टान्हिका में उद्यापन करे । उस समय पुष्पदंत भगवान का विधान करे । महाभिषेक करे ।
कथा
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में विजयाध पर्वत के दक्षिण श्रेणी में रथनपुर नामक एक शहर है । वहां पहले ज्वलन श्रेष्ठी नामक एक राजा राज्य करता था। उसकी वायुवेगा नामक सुन्दर स्त्री थी। उसका पुत्र अर्ककीति था व लड़की का नाम स्वयंप्रभा था । उसके राज्य में पुरोहित श्रुतकीति व मंत्री श्र तार्थ था। सुदत्त नामक राजश्रेष्ठी था।
एक दिन उस नगर के मनोहर नामक उद्यान में जगन्नंदन व भीमनंदन नामक दो चारण ऋद्धि महाराज पाये । राजा यह बात सुनकर दर्शन करने के लिये अपने नगरवासियों सहित गया । वहां जाकर उसने तीन प्रदक्षिणा, वन्दना, पूजादि किया । धर्मोपदेश सुनने के बाद अपने दोनों हाथ जोड़कर बोले हे भक्तरोगनाशक !
आप हमें उत्तम पुण्य का कारण ऐसा कोई व्रत बतायो । तब उन्होंने नवबल देव व्रत करने के लिये कहा । फिर सब लोग वन्दना कर घर आये। विधिपूर्वक व्रत का पालन किया जिससे अनुक्रम से मोक्ष सुख की प्राप्ति हुई ।
अथ नवप्रतिवासुदेव व्रत कथा व्रत विधि :-पौष शु. ७ के दिन एकाशन करे, अष्टमी के दिन पहले के समान सब विधि करे, अष्टद्रव्य लेकर मंदिर जाये । नवदेवता प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करे । भगवान के सामने एक पाटे पर नव स्वस्तिक निकाले । उस पर पान रखें, उस पर अष्ट द्रव्य रखें । अघ्य द र पूजा अचना कर।