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________________ व्रत कथा कोष [ ३२७ तो उन्हें आहार कराने के पश्चात् आहार ग्रहण करना होता है । इस प्रकार द्वारावलोकन व्रत पूर्ण हुआ । विवेचन : - द्वारावलोकन व्रत में दो प्रहर का नियम कर द्वार पर खड़ े हो जाना और मुनि या ऐलक, क्षुल्लक के श्राने की प्रतीक्षा करना । यदि दो प्रहरों के मध्य में मुनिराज प्रा जायें तो उन्हें आहार करा देने के पश्चात् आहार ग्रहण करना । मुनिराजों के न मिलने पर ऐलक या क्षुल्लक को आहार करा देना होता है । इस व्रत में दो प्रहर का ही नियम रहता है, यदि दो प्रहर तक कोई पात्र नहीं मिले तो स्वयं भोजन कर लेना चाहिए। दो प्रहर तक निरन्तर पात्र की प्रतीक्षा करनी पड़ती है, विधिपूर्वक नवधाभक्ति से युक्त होकर पात्र को भोजन कराया जाता है । पात्र के न मिलने पर किसी साधर्मी भाई को भो भोजन कराने के उपरान्त इस व्रत वाले को आहार ग्रहण करना चाहिए । यदि कोई भी उपयुक्त अतिथि उस दिन न मिले तो दीन बुभुक्षितों को ही प्रहार कराना उचित होता है । यद्यपि दो प्रहर के अनन्तर व्रत की मर्यादा पूरी हो जाती है, फिर भी किसी भी प्रकार के पात्र को आहार कराने के उपरान्त ही भोजन ग्रहण करना चाहिए । धनकलश व्रत कथा भाद्रपद शुलं १ के दिन स्नानादिक से शुद्ध होकर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाभिषेक की सामग्री लेकर जिन मन्दिर जावे, प्रथम मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर पथ शुद्धि करे, फिर भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर आदिनाथ तीर्थंकर व यक्षयक्षिणी की मूर्ति स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे । मण्डप वेदी पर पांच वर्ण की रंगोली (चूर्ण) से प्रष्टदल कमल यन्त्र मांडे । मण्डप को खूब सजा देवे, अष्टद्रव्य से भगवान की पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की भी अर्चना करे, पंच पकवान बनाकर चढ़ावे | ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह आदिनाथ तीर्थंकराय गोमुखयक्ष चक्रेश्वरी देवि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, सहस्रनाम पढ़े, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में महार्घ्य हाथों में लेकर मन्दिर की
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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