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________________ व्रत कथा कोष - - ----[३२५ को गई । उस उद्यान में एक जगह एक शिला पर बसन्तसेन नाम के अवधिज्ञानी मुनिराज ध्यान कर रहे थे, ये चारों कन्याएं वहां पहुंची और तीन प्रदक्षिणा लगाकर नमस्कार कर समीप में बैठ गई, कुछ समय बाद मुनिराज ने ध्यान विसर्जन किया, तब उन चारों में से एक कन्या मुनिराज को हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी कि हे देवें ! हमारे संसार का विच्छेद हो ऐसे किसी एक व्रत की विधि हमें बतायो । तब मुनिराज ने दशलक्षणिक व्रत की विधि कह सुनाई । उन चारों ही कन्याओं ने इस व्रत को विधिपूर्वक मुनिराज से ग्रहण किया और नगर को वापस लौट आई । भक्ति से उस व्रत का पालन किया और अन्त में समाधिपूर्वक मरण कर स्त्री पर्याय का छेद करती हुई स्वर्ग में देव हुई । वहां की प्रायुपर्यन्त स्वर्ग सुख भोग कर अन्त में मरण को प्राप्त हुए। भरत क्षेत्र के मालव देश में उज्जयनी नगरी का स्थूलभद्र राजा अपनी विचक्षणा, लक्ष्मीमति, सुशीला, कमलाक्षी इन चार रानियों सहित राज्य करता था । इन चारों के क्रमशः चार पुत्र पैदा हुए, ये चारों ही पुत्र गुणवान व धर्मनिष्ठ थे । इन चारों ही राजकुमारों के यौवन अवस्था में आने पर चारों की शादी कर दी गई। ___ एक दिन स्थूलभद्र राजा को मेघ-विघटन से वैराग्य हो गया, अतः अपने बड़े पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ले ली और तपश्चरण करने लगा और सर्व कर्मों का क्षय कर मोक्ष को गया। वे चारों पुत्र राज्य करने लगे, राज्य-सुख भोगने लगे । उनको भी एक दिन वैराग्य हो गया और निग्रंथ मुनिराज के पास जाकर दीक्षा लेली । वे भी कर्म काटकर मोक्ष को गये । अथ दशप्राणनिवारण व्रतकथा व्रत विधि :-पहले के समान करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि ज्येष्ठ शुक्ल १ के दिन एकाशन करे । २ के दिन उपवास पूजा आराधना व मन्त्र जाप आदि करे । अथ दारिद्रयविनाशक व्रत कथा व्रत विधि :-आश्विन शुक्ल पक्ष में प्रथम गुरुवार को एकाशन करे और शुक्रवार को उपवास करे । दूसरी विधि पहले के समान करे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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