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व्रत कथा कोष
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इस प्रकार १४४ दिन पूर्ण होने पर अन्त में उद्यापन करे, वासुपूज्य तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करे, चतुविध संघ को दान देवे ।
कथा
इस व्रत को सीतादेवी आदि महासतियों ने किया था, इसलिये स्त्रीलिंग छेदकर स्वर्ग में देव हुई ।
कथा में राजा श्रेणिक और रानी चेलना की कथा पढ़े ।
दुग्धरसी व्रत
दुग्धरसी व्रत भादों सुदि धरे, बारसि को पय भोजन करे । - वर्धमान पु० भावार्थ :- यह व्रत भादों शुक्ला द्वादशी के दिन किया जाता है । इस दिन सिर्फ दूध का आहार लेवे । सारा समय धर्मध्यान में व्यतीत करे । नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे । १२ वर्ष पूर्ण होने पर उद्यापन करे ।
दुःखहररण व्रत
व्रत दुखहररण एक सौ बीस, तितने हो एकान्तर दीस । भावार्थ :- यह व्रत २४० दिन में पूरा होता है जिसमें १२० पारणे होते हैं, अर्थात् एक उपवास, एक पारणा, इस क्रम मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे ।
द्वादशी व्रत
भादों शुक्ल द्वादशी होय, व्रत द्वादशी कर भवि सोय । भावार्थ :- यह व्रत १२ वर्ष में पूर्ण होता है । प्रति वर्ष द्वादशी के दिन उपवास करे । 'प्रों ह्रीं अर्हद्भ्यो नम:' इस मन्त्र का करे । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे ।
-- वर्धमान पु०
१२० उपवास और से करे | नमस्कार
- जैन व्रत कथा
भाद्रपद शुक्ला त्रिकाल जाप्य
लघुद्विकावली व्रत
यह व्रत १२० दिन में समाप्त होता है, इसमें २४ वेला, ४८ एकाशन और २४ पारणा इस प्रकार १२० दिन लगते हैं । प्रथम वेला, पुनः पारणा, तत्पश्चात्