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________________ २६८ ] व्रत कथा कोष इस दोष को दूर करने के लिए तुम सातसौ सतर (७७०) जिन मन्दिर बनाकर उनमें जिन प्रतिमा विराजमान करो । उसी प्रकार ७७० मुनि बनाये । और आप लोग सब (कामितपद व्रत) जिनदत्तराय व्रत का यथाविधि पालन करो और उद्यापन करो। उसकी विधि सब बतायी। फिर गंडादित्य राजा निवसावंत मन्त्रि, पुरोहित, राजश्रोष्ठि, सेनापति वगैरह लोगों ने उस माणिक्यनंदि मुनिश्वर को नमस्कार करके व्रत लिया। फिर सब ने भक्ति से नमस्कार किया और अपने नगर में वापस आये । फिर गंडादित्य आदि ने यह व्रत यथाविधि पालन किया व उद्यापन किया। इस व्रत के पुण्य से वे सब अपने पुण्य से सद्गति गये । ऐसा इस व्रत का प्रभाव है। अथ जुगुप्साकर्मनिवारण व्रत कथा विधि :-पहले के समान सब विधि करे। अन्तर केवल इतना है कि चैत कृष्ण के दिन एकाशन करे मुनिसुव्रत भगवान की पूजा, जाप मन्त्र, पत्ति, मांडला आदि करे । जिनचंद्र व्रत कथा आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को शुद्ध होकर मन्दिर जी में जावे, ईर्यापथ शुद्धि पूर्वक प्रदक्षिणा करता हुमा, भगवान को प्रदक्षिणा पूर्वक नमस्कार करे, पंचपरमेष्ठि की प्रतिमा स्थापन कर पंचमृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे।। ___ॐ ह्रीं ह्रां ह्रह्रौं ह्रः असि प्रा उ सा स्वाहा, इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे । व्रत कथा पढ़, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य पूर्वक रहे दूसरे दिन दान देकर पारणा करे, उपवास करने की शक्ति न हो तो तीन दिन एकाशन करे। इस प्रकार चार महिने अष्टमी के दिन व्रत पूजा करे, कार्तिक अष्टान्हिका में अत का उद्यापन करे, उस समय पंचपरमेष्ठि का विधान करे, महाभिषेक करे, चतुर्विध संघ को दान देवे।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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