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________________ २७० ] व्रत कथा कोष का पालन कर समयानुसार उद्यापन किया । जिसके योग से उनको स्वर्ग तथा क्रम से मोक्ष की प्राप्ति हुई। चन्दन षष्ठीव्रत की विधि चन्दनषष्ठ्यां तु भाद्रपदकृष्णा षष्ठी ग्राह्या, षड्वर्षाणां यावत् व्रतं भवति, अत्र चन्द्रप्रभस्य पूजाभिषेकं कार्यम् । अर्थ :-चन्दनषष्ठी व्रत भादों वदी षष्ठी को होता है, छः वर्ष तक व्रत किया जाता है । इस व्रत में चन्द्रप्रभ भगवान् का पूजन, अभिषक करना चाहिए। विवेचन :-भादों वदी षष्ठी को उपवास धारण करें। चारों प्रकार के आहार का त्याग कर जिनालय में भगवान् चन्द्रप्रभ का पूजन, अभिषेक करे । छः प्रकार के उत्तम प्रासुक फलों से छः अष्टक चढ़ावे । णमोकार मन्त्र का १०८ बार फूलों से जाप करना चाहिए । चारों प्रकार के संघ को आहार, औषध, अभय और ज्ञान इन चारों दानों को देना चाहिए। तीनों काल सामायिक, अभिषेक पूजन और रात्रि-जागरण करना चाहिए। रात को स्तोत्र, भजन, पालोचना. एवं प्रार्थनाएं पढ़ते हुए धर्मध्यान पूर्वक बिताना चाहिए। उपवास के दिन गृहारम्भ, विषय-कषाय और विकथानों का त्याग करना चाहिए। यह छः वर्ष तक किया जाता है । चंद्रषष्ठी व्रत कथा भाद्रपद कृष्णा ६ के दिन शुद्ध होकर पूजा सामग्री लेकर मंदिर में जावे, ईर्यापथ शुद्धि करके भगवान को नमस्कार करे, मंडप शृगारित करके शुद्ध भूमि पर या मंडपवेदी पर पांच वर्ण से षष्टदल कमल बनावे, अष्टमंगल कुम्भ, मंगलद्रव्य रखे, उसके बाद अभिषेक पीठ पर चंदप्रभु भगवान की मूर्ति यक्षयक्षिणी सहित स्थापन कर पंचामताभिषेक करे, भगवान को मंडल पर स्थापन कर नित्यपूजा विधिक्रम करके चंदनषष्टी व्रत विधान करे, इसी प्रकार चार बार व्रत विधान करे, ३६ नैवेद्य चढ़ावे, श्रु त गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि की पूजा करे। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं श्री चंद्रप्रभ तीर्थंकराय श्यामयक्ष ज्वालामालिनी देवि सहिताय नमः स्वाहा।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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