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व्रत कथा कोष
श्री जिन सहस्र नाम का पाठ करे । एक पात्र में २४ पान रखकर उस पर अष्ट द्रव्य रखे । उस पर नारियल रखे । इस प्रकार महाग्रं तैयार करे । प्रारती करे । उस दिन उपवास करे। सत्पात्र को आहार आदि दे। दूसरे दिन पूजा दान आदि करके पारणा करे, तीन दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
इस प्रकार पौष व माघ तक पूजा करे । इस प्रकार तीन पूजा पूर्ण होने पर अष्टान्हिका में इस व्रत का उद्यापन करे। उस समय श्री सम्मेदशिखरजी व्रतविधान व गणधरवलय विधान करके महाभिषेक करे ।
कथा इस जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती नामक एक विशाल नगर है । उसमें पुण्डरीकिणी नामक एक सुन्दर नगर है। वहां पर वज्रसेन नामक एक बड़ा पराक्रमी राजा राज्य करता था । उसके श्रीकान्ता नामक एक सुशील स्त्री थी। उसको वज्रनाभि नामक पुत्र था। इस प्रकार अपने पूरे परिवार सहित राजा छः खण्ड के राज्य को भोग रहा था।
एक दिन उस नगर के उद्यान में श्रुतसागर महामुनि महाराज अपने संघ सहित आये थे । यह सुन राजा अपनी प्रजा सहित दर्शन करने गये । वन्दना कर राजा ने धर्मोपदेश सुना । राजा ने अपने दोनों हाथ जोड़कर मुनिश्वर से कहा कि हे दयासिंधो स्वामिन ! सुगति साधक ऐसा कोई व्रत कहो। तब महाराज ने यह गणधर व्रत विधान कहा । तब राजा ने अपने पूरे परिवार सहित यह व्रत लिया, फिर वंदना कर सब अपने नगर में वापस आये । और यह व्रत विधिपूर्वक किया। इस व्रत के प्रभाव से वज्रनाभि राजा इस भरतक्षेत्र के पहले तीर्थ कर आदिनाथ हुये । बाकी के सब गणधर हुये ।
अथ चतुर्विंशतिदातृ व्रत कथा व्रत विधि :-इसकी पहले के समान सब विधि करना । वैशाख शु० २ को एकाशन व ३ को उपवास, पूजा वगैरह करके स्वयंभूस्तोत्र पढ़ना ।
कथा
जम्बूद्वीप में पूर्वविदेह क्षेत्र में पुण्डरीकिणी देश है । वहाँ कुबेरकांत राज