________________
व्रत कथा कोष
२४३
कथा
इस व्रत को कृष्ण नारायण की पट्टरानी रुकमणी ने किया था, व्रत के प्रभाव से पद्मनु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, वो पद्मनु दीक्षा लेकर कर्म काट कर मोक्ष को गये ।
कारुण्य व्रत कथा
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी को एकाशन करके चतुर्दशी को स्नान करके शुद्ध होकर मन्दिर जी में जावे, प्रदक्षिणा देकर भगवान को नमस्कार करे, आदिनाथ भगवान का पंचामृताभिषेक करे, एक पाटे पर छह पान लगाकर ऊपर अष्टद्रव्य रखे, उसके बाद अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गरणधर, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल की पूजा करे । आदिनाथ भगवान ने राज्य अवस्था में षट्कर्म उपदेश किया था, इसीलिये इस व्रत का नाम कारुण्य व्रत पड़ा ।
ॐ ह्रीं षट्कर्म क्रिया चारण लोकोपदेशक श्री वृषभदेवाय जलादि अर्ध्य नि० मन्त्र से छह बार अष्टद्रव्य से पूजा करे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं षट्कर्माचाररण लोकोपदेशक श्री वृषभनाथ तीर्थंकराय गोमुखयक्ष चक्र ेश्वरी यक्षीसहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़ े, एक पूर्ण उपवास करे, दूसरे दिन पूजा दान करके प्रतिपदा से लेकर षष्ठिपर्यंत पूर्ववत् पूजा एकाशन करे ।
लेकर जाप्य करे, रणमोकार मन्त्र का १०८ अर्घ्य चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन स्वयं पारणा करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, करे, सत्पात्रों को दान देवे, छह वस्तुओं से
इस प्रकार छह वर्ष पूजा करके अंत में उद्यापन करे, उस समय श्रादिनाथ तीर्थंकर की नवीन प्रतिमा लाकर पंच कल्याणक प्रतिष्ठा करे, भक्तामर विधान करे, महाभिषेक करे, ६ मुनियों को श्राहारादि देवे, आर्यिका व श्रावक-श्राविकाओं को भोजनादि देवे |
कथा
आदिनाथ तीर्थंकर का चरित्र पढ़, भरत का चरित्र पढ़े । राजा श्रेणिक व रानी चेलना की कथा पढ़ े ।