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________________ २२८ ] व्रत कथा कोष सात प्रकार के धान्यों के अलग-अलग ढेर लगाकर ऊपर सात सुवर्णपुष्प रखे, सात वायना तैयार कर भगवान के आगे मात्र रखे, चढ़ावे नहीं, उन वायना के अन्दर एक देव को, एक शास्त्र को, एक गुरु को, एक यक्ष को, एक यक्षिणी को रखे, दो वायना अपने घर ले जावे, चारों प्रकार का दान देवे । इस व्रत को यथाविधि पालन करना चाहिये । इस व्रत का प्रभाव अचित्य है, सब प्रकार का सुख प्रदान करने वाला है । कथा इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अवंति नामक विस्तीर्ण देश है, उसमें उज्जैनी नाम का नगर है, उस नगर में देवपाल राजा अपनी धर्मात्मा रानी लक्ष्मीमति साथ राजैश्वर्य भोग रहे थे । एक दिन नगर के उद्यान में श्री पार्श्वसेनजी महामुनि पधारे, राजा को समाचार प्राप्त होते ही, अपने पुरजन- परिजन सहित दर्शन के लिये उद्यान में गया, वहां मुनिराज के दर्शन कर उपदेश सुनने के लिये धर्मसभा में बैठ गया । कुछ समय धर्मोपदेश सुनने के बाद लक्ष्मीमति रानी ने मुनिराज को हाथजोड़ कर प्रार्थना की कि हे गुरुदेव, मेरा प्रात्मकल्याण हो उसके लिये कोई व्रत प्रदान करो । तब मुनि - राज ने उसको कुजपंचमी व्रत दिया और व्रतविधि कह सुनायी, सब लोग नगर में वापस लौट आये । श्रागे लक्ष्मीमति रानी ने व्रत को यथाविधि पालन किया, अंत में उद्यापन किया, कुछ वर्ष राज्य सुख भोगकर संन्यासविधि से मरण को प्राप्त किया और स्वर्ग में जाकर देव हुई । आगे मोक्ष को जायेगी । श्रथ कर्मदहन व्रत कथा बारह मासों में से कोई भी महिने में व्रत प्रारम्भ करना, उस दिन स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाभिषेक का सामान लेकर जिन मन्दिर जी जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को नमस्कार करे, घी का दीपक जलावे, अभिषेक पीठ पर सिद्ध प्रतिमा और पंचपरमेष्ठि की प्रतिमा स्थापित कर पंचामृताभिषेक करे, फिर भ्रष्टद्रव्य से अलग-अलग पूजा करे, पंच पकवान चढ़ावे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी की व क्षेत्रपाल की भी पूजा करे । ॐ ह्रीं महं श्रसि श्रासा अनाहत विद्यायै नमः स्वाहा ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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