SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ ] व्रत कथा कोष दिन उपरोक्त उपवास करे, पूजा करे, अन्त में कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन उद्यापन करे, उस समय जिनेन्द्र प्रभु का महाभिषेक पूजा करके भावागन के आगे सप्तधान्य का ढेर अलग-अलग लगाकर २४ प्रकार का नैवेद्य बनाकर चढ़ावे, चतुर्विध संघ को दान देवे । कथा इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में नेपाल देश है, उस देश में श्रीपुर नाम का नगर है । उस नगर का राजा भूपाल- अपनी रानो रूपवती सहित राज्य करता था। उस नगरी में श्रीवर्म नाम का राजश्रेष्ठी अपनी श्रीमती सेठानी के साथ रहता था। उसके नयसेन, धरसेन, क्रतीसेन, कालसेन, रूद्रसेन, वरसेन, देवसेन, महासेन, अमरसेन और धान्यसेन, ऐसे दस पुत्रों सहित व एक कन्या बन्धुश्री सहित रहता था। जब कन्या यौवनवतो हुई तब काश्मीर देश के चित्रांगत नगर में धनमित्र सेठ के पुत्र धनपाल का उस बन्धुश्री से विवाह कर दिया । एक दिन उस नगर के उद्यान में पांच सौ साधुओं के संघ सहित मूतानान्द नाम के महामुनिश्वर पधारे। धनपान श्रेष्ठी को समाचार मिलते ही वह अपने परिवार सहति उद्यान में मुनि दर्शन को गया। मुनिराज की तीन प्रदक्षिणा लगाकर दर्शन करता हुआ धर्मोपदेश सुनने के लिए सभा में जाकर बैठा । कुछ समय उपदेश सुनकर बन्धुश्री कहने लगी-हे स्वामिन ! हमको इतना धन-सम्पत्ति का वैभव प्राप्त हुआ है वह कौनसे पुण्य से प्राप्त हुआ है ? मुनिराज उसके वचन सुनकर अवधिज्ञान के बल से पूर्व भव का वृतान्त कहने लगे। इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगध नाम का देश है । उस देश में राजगृह नाम का नगर है, वहां प्रतापधर राजा अपनी विजयादेवी रानी के साथ राज्य करता था। उस नगर में एक अत्यन्त दीन-दरिद्री कनकप्रभ नाम का मनुष्य रहता था, उसकी कनकमाला नाम की स्त्री थी, वे दोनों बहुत दुःख से समय निकालते थे, एक दिन देवपाल नामक निर्ग्रन्थ मुनि आहार के लिये उस नगर में आये तथा उन दोनों पति-पत्नी ने मुनिराज को नवधाभक्तिपूर्वक आहार दान दिया। निरन्तराय आहार होने के बाद मुनिराज को एक पाटे पर बिठाकर अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy