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व्रत कथा कोष
नाम के मुनिराज आये, राजा रानी, नगरवासी सब लोग मुनिराज के दर्शन को गये, वहां दर्शन कर मुनिराज का धर्मोपदेश सुना । कुछ समय बाद रानी लक्ष्मीमती कहने लगी कि हे देव ! मुझे कुछ व्रत प्रदान कीजिये, जिससे मेरा भव-भ्रमरण समाप्त हो, तब मुनिराज ने कल्पकुज व्रत की विधि कह सुनाई । संतुष्ट होकर रानी ने उस व्रत को ग्रहण किया, और नगर में वापस लौट आये, यथाविधि व्रत का पालन किया, अंत में उद्यापन किया, फलस्वरूप क्रमशः मोक्ष को गई।
अथ कल्पांबर (कल्पामर) व्रत कथा श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर, हाथों में पूजा अभिषेक की सामग्री लेकर जिन मंदिर में जावे, मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर जिनेन्द्र प्रतिमा यक्षयक्षिणी सहित स्थापित कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की अर्चना करे,
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अह अहत्परमेष्ठिने यक्षयक्षि सहिताय नमः स्वाहा।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, जिन सहस्रनाम पढ़े, णमोकार मंत्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में महाअर्घ्य रखकर हाथ में लेवे, मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मगल आरती उतारे, महाअर्घ्य को चढ़ा देवे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, उपवास करे, दूसरे दिन चतुर्विध संघ को आहारादि देकर स्वयं पारणा करे। इस प्रकार १७ महिने तक इसी तिथि को पूजा कर उपवास करे, व्रत करे, अन्त में उद्यापन करे, उस समय विमानशुद्धि विधान करे, सत्पात्रों को दान देवे, पुरोहित विद्वानों को पंचरत्न का दान देवे। व्रत कथा में राजा श्रोणिक व रानो चेलना का चरित्र पढ़े ।
काम्यव्रतों का फल एवं पूर्वोक्तमनन्त चतुर्दशी व्रतमपि काम्यमस्ति । काम्यव्रताचरणेन दुःखदारिद्रयादिकं विलीयते, धनधान्यादिकं वर्धते । चन्दनषष्ठी लब्धिविधान व्रतयोरपि काम्यत्वात् पुत्रपौत्र धनधान्यैश्वर्यविभूतीनां वद्धिः जायते । विधिपूर्वककाम्यव्रताचरणेन इष्टसिद्धिर्भवति रोगशोकादयः पलायन्ते, अमराः किंकराः भवन्ति, कि बहुना ॥ काम्यानि समाप्तानि ॥