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व्रत कथा कोष
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भगवान जंगल को वापस चले गये । यह सब समाचार अयोध्या के अन्दर राजा भरत को प्राप्त हुए, राजा भरत अपने परिजन सहित हस्तिनापुर में आकर राजा श्रेयांस का आदर सहित सम्मान करके वापस अयोध्या चला गया। यह सब कथा सुप्रभ नामक चारण मुनिश्वर के मुख से सुनकर पृथ्वीदेवी अत्यन्त संतुष्ट हुई, मुनिराज को नमस्कार करके और व्रत को ग्रहण करके लोगों के साथ वापस अपने घर को आ गई।
उसने उस व्रत को विधिपूर्वक पालन करके व्रत का उद्यापन किया । उस व्रत के फल से पृथ्वीदेवी ने शुभ लक्षणयुक्त बत्तीस पुत्र व उतनी ही पुत्रियों को जन्म दिया। बहुत काल पर्यन्त सुख भोग कर अंत में वैराग्ययुक्त होकर जिन दीक्षा धारण की। फिर घोर तपस्या करके मोक्षसुख को प्राप्त किया।
____ इस कारण हे भव्य जीवो ! तुम भी इस अक्षयतृतीया व्रत को विधिपूर्वक करो, तुमको भी क्रमशः अक्षय सुख की प्राप्ति अवश्य होगी।
नोट :- इस व्रत का स्वतंत्र उद्यापन नहीं है। या तो प्रादिनाथ सम्बन्धी कोई भी विधान करे, अथवा नव देवता की नवीन मूर्ति बनवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करावे।
अथ इन्द्रियपर्याप्तिनिवारण व्रत कथा व्रत विधि :--पहले के समान करें । अन्तर सिर्फ इतना है कि वैशाख कृष्ण ४ के दिन एकाशन करें। ५ के दिन उपवास, पूजा, आराधना व मन्त्र जाप आदि करें।
कथा राजा श्रेणिक व रानी चेलना की कथा पढे ।
इन्द्रध्वज व्रत कथा व विधि आषाढ शुक्ला अष्टमी के दिन स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहिने मन्दिर जी में जावे, वहां मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि कर, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, शेष पूर्व व्रत विधि के अनुसार करे, विशेष कुछ नहीं है । उपवास करके व्रत करे अथवा एकभुक्ति अथवा एकाशन अपनी शक्तिनुसार करे । उद्यापन