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व्रत कथा कोष
मिले हुये हैं । इन सात क्षेत्रों में से दक्षिण की ओर से सब के अन्त के क्षेत्रों को भरत क्षेत्र कहते हैं।
इस भरत क्षेत्र में भी बीच में विजयाद्ध पर्वत पड़ जाने से यह दो भागों में बँट जाता है । और उत्तर को प्रोर जो हिमवान् पर्वत पर पद्मद्रह है, उससे गंगा और सिंधु दो महा नदियां निकलकर विजयाद्ध पर्वत को भेदती हुई पूर्व और पश्चिम से बहती हुई दक्षिण समुद्र में मिलती हैं । इससे भरत क्षेत्र के छः खण्ड हो जाते हैं, इन छः खण्डों में से सबसे दक्षिण का बीचवाला खण्ड आर्यखण्ड कहलाता है । और शेष ५ म्लेच्छ खण्ड कहलाते है । इसी आर्यखण्ड में तीर्थ करादि महापुरुष उत्पन्न होते हैं । यही आर्यखण्ड कहलाता है ।
___इसी आर्यखण्ड में मगध नाम का एक प्रदेश है, जिसे आजकल बिहार प्रांत कहते हैं ।
इस मगध देश में राजगृही नाम की एक बहुत मनोहर नगरी है। और इस नगरी के समीप विपुलाचल, उदयाचल आदि पांच पहाड़ियां हैं, तथा पहाड़ियों के नीचे कितनेक उष्ण जल के कुण्ड बने हैं । इन पहाड़ियों व झरनों के कारण नगर की शोभा विशेष बढ़ गई है । यद्यपि कालदोष से अब यह नगर उजाड़ हो रहा है, परन्तु उसके आस-पास के चिन्ह देखने से प्रकट होता है कि किसी समय यह नगर अवश्य ही बहुत उन्नत रहा होगा।
आज से ढाई हजार वर्ष पहिले अन्तिम (चौबीसवें) तीर्थङ्कर श्री वर्द्धमान स्वामी के समय में इस नगर में महामण्डलेश्वर महाराजा श्रेणिक राज्य करता था। वह राजा बड़ा प्रतापो, न्यायी और प्रजापालक था। वह अपनी कुमार अवस्था में पूर्वोपार्जित कर्म के उदय से अपने पिता द्वारा देश से निकाला गया था और भ्रमण करते हुए एक बौद्ध साधु के उपदेश से बौद्ध मत को स्वीकार कर चुका था। वह बहुत काल तक बौद्ध मतावलम्बी रहा। जब यह श्रेणिक कुमार निजबाहु बुद्धिबल से विदेशों में भ्रमण करके बहुत विभूति व ऐश्वर्य सहित स्वदेश को लौटा, तो वहां के निवासियों ने इन्हें अपना राजा बनाना स्वीकार किया। इस समय इनके पिता उपश्रेणिक राजा का स्वर्गवास हो चुका था, और इनके एक