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व्रत कथा कोष
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श्वराः उदयव्यापिनीमपि तिथि गृहन्ति । यथा पूर्वमुदयकालव्यापिनी तिथिग्रंहिता, चकारात् अस्तकालव्यापिन्याः तिथेरपि ग्रहणं भविष्यति तथैवात्रापि अवधेयम् । तां पूर्वोक्तां तिथिम् अाखिलेषु धर्मेषु कार्येषु गौतमादिगणेश्वराः पूर्णा वदन्ति ।
अर्थः---प्रातः काल में तीन महर्त रहने वाली जिस तिथि को प्राप्त कर सूर्य अस्त होता है, धर्मादि कार्यों में वह तिथि पूर्ण मानी जाती है। इस प्रकार का कथन व्रत धारण करने वाले मुनीश्वरों का है । इस श्लोक में 'च' शब्द पाया है, जिसका अर्थ है कि सूर्योदय के पूर्व तीन मुहूर्त रहने वाली तिथि भी नैशिक व्रतों के लिए ग्राह्य है। तात्पर्य यह है कि इस श्लोक के अनुसार व्रत तिथि का ज्ञान दोनों प्रकार से ग्रहण किया गया है--उदय और अस्तकाल में रहने वाली तिथि के अनुसार । उदयकाल के उपरान्त कम-से-कम तीन मुहूर्त ५घटी ३६ पल प्रमाण विधेय तिथि के रहने पर ग्राह य माना जाता है। इसी प्रकार व्रत वाली तिथि के सूर्योदय के पहले तक रहने पर भी नैशिक व्रतों के लिए तिथि ग्राह्य मान ली गयी है।
विवेचनः--बत ग्रहण और व्रतोद्यापन के लिए इस श्लोक में तिथि का विधान किया गया है । यद्यपि सामान्यतः व्रत २ लिए कितनी तिथि ग्रहण होती है ? इसका विचार पहले खुब किया जा चका है । इस समय व्रत ग्रहरण और उद्यापन के के लिए कितनी तिथि ग्रहण करनी चाहिए । प्राचार्य विधान बतलाते हैं-व्रत ग्रहण और व्रतोद्यापन के लिए देवासिक और नैशिक व्रतों के निमित्त पृथक्-पृथक् तिथि का विधान बतलाते हैं। प्रथम नियम तो यह है कि सूर्योदय काल के उपरान्त ढाई घंटे तक व्रत की विधेयतिथि हो तो व्रत का प्रारम्भ और उद्यापन करना चाहिए । किन्तु यह नियम दैवसिक व्रतों के लिए ही है, नैशिक व्रतों के लिए नहीं । नैशिक व्रतों का नियम यह है कि सूर्योदय के पूर्व जो तिथि ढाई घण्टे रही हो, वही ग्राह्य हो सकती है। उदाहरण भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी बुधवार को प्रातःकाल १०/१५ घट्यादि है और भाद्रपद चतुर्थी मंगलवार को १८१० घट्यादि है । अब विचारणीय यह है कि दैवसिक व्रतों के लिए किस दिन पञ्चमी मानी जायगी और नैशिक व्रतों के लिए किस दिन ? बुधबार को १०/१५ घट्यादि मान पञ्चमी का है, इस दिन सूर्य पञ्चमी के इस मानके साथ अस्त होता है अतः देवसिक व्रतों के लिए बुधवार को ही पञ्चम ग्राह्य होगी।