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________________ व्रत कथा कोष [६५ है, अतः धर्मध्यान, सामायिक आदि क्रियाएं, जिनका सम्बन्ध प्रोषधोपवास से है, त्रयोदशी में सम्पन्न नहीं हो सकेंगी। चतुर्दशी को प्रोषधोपवास करना है, यह भी मंगलवार को ७ घटी ५० पल प्रमाण है । गणित से चतुर्दशी तृतीयांश १६/५० घट्यादि पाया हैं, अतः मंगल को उपवास नहीं किया जा सकता, उपवास सोमवार को करना पड़ेगा । इसी प्रकार पारणा मंगलवार को करनी होगी। उपवास और पारणा की क्रियाए सम्पन्न करने की तिथियों में व्यतिक्रम हो जाता है । जिससे नियमित समय पर धार्मिक क्रियाएं नहीं हो सकेंगी। तीसरा दोष तृतीयांश प्रमाण तिथि मानने से यह आता है कि स्पष्ट मान के अनुसार तिथि का तृतीयांश लेने पर एकाशन की तिथि के अनन्तर एक दिन बीच में यों हो खाली रह जायगा तथा उपवास की तिथि एक दिन बाद ही पड़ेगी। उदाहरण के लिए यों समझना चाहिए कि किसी व्यक्ति को चतुर्दशी का प्रोषधोपवास करना है। त्रयोदशी बुधवार को १५/१२ है, गुरूवार को चतुर्दशी १६ घटी १० पल है । शुक्रवार को पूर्णिमा १७ घटी १५ पल है । ऐसी अवस्था में मंगलवार को त्रयोदशी का एकाशन करना पड़ेगा, बुधवार को यों ही रहना पड़ेगा । तथा गुरूवार को चतुर्दशी का उपवास करना पड़ेगा तथा शुक्रवार को पारणा । यह प्रोषधोपवास यथार्थ प्रोषधोपवास नहीं कहलाएगा। विधि में भी व्यक्तिक्रम हो जायगा, अतः तृतीयांश प्रमाण तिथि स्वीकार कर व्रत करना उचित नहीं है। सामान्यतः तृतीयांश मान तिथि का ग्रहण किया जाय तो ठीक है, पर उदयकाल में तृतीयांश प्रमाण मानना उचित नहीं झुंचता है। इस प्रमाण में अनेक दोष पाते हैं, तथा व्रत करने में व्यक्तिक्रम भी होता है। रस घटी प्रमाण भी तिथि का मान काष्ठासंघ के कुछ प्राचार्य मानते हैं । उनका कथन है कि समस्त तिथि का षष्ठांश व्रतके लिए ग्राह्य है । यदि उदयकाल में कोई भी तिथि अपने प्रमाण के षष्ठांश भी हो तो उसे व्रत के लिए विहित माना गया
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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