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ब्रत कथा कोष
उदाहरण-सोमवार को सप्तमी तिथि का मान पञ्चांग में १५ घटी २५ पल कित है और मंगलवार को अष्टमी १० घटी ४० पल प्रकित को गयो है। कुल अष्टमी का प्रमारण निम्नप्रकार हुआ
(अहरोत्र प्रमाण-पञ्चांग अंकित पूर्वतिथि-सप्तमी) =अनंकित व्रततिथि = अष्टमी का प्रमाण= (६०/७- (१५/२५) - ४४।३५ अनंकित व्रततिथि अष्टमी (अनंकित व्रततिथि + पञ्चांग अकित व्रततिथि) = (४४/३५)+ (१०/४०) समस्त व्रततिथि =५५/१५ इसका तृतीयांश निकाला तो-५५/१५३= १८/२५ अर्थात् १८ घटी २५ पल तृतीयांश प्रमाण आया । यदि अष्टमी सूर्योदय काल में १८ घटी २५ पल के तुल्य हो या इससे अधिक हो तभी काष्टसंघ के द्वितीय मत के अनुसार ग्राह्य हो सकती है। प्रस्तुत उदाहरण में १० घटी ४० पल ही है, अतः व्रत के लिए ग्राह्य नहीं मानी जा सकती है। व्रत करने वाले को सोमवार के दिन हो इस सिद्धान्त के अनुसार व्रत करना पड़ेगा। ततीयांश प्रमाण व्रत के लिए तिथि मानने वाले मत को पालोचना
मध्यम मान या स्पष्ट मान से समस्त तृतीयांश व्रत के लिए प्रमाण मानना उचित नहीं जंचता है । क्योंकि उदयकाल में तृतीयांश मात्र शायद ही कभी तिथि मिलेगी ऐसी अवस्था में व्रत सदा अनंकित तिथि में ही करना पड़ेगा। मध्यम मान की अपेक्षा २० घटी प्रमाण उदय तिथि का मान आवेगा और स्पष्ट मान की अपेक्षा से कभी २० घटी से अधिक २२ घटी के लगभग हो सकता है और कभी २० घटी से न्यून ही प्रमाण रहेगा । ऐसी अवस्था में उदयकाल से उक्त प्रमाण तुल्य व्रत के लिए तिथि मिलना सम्भव नहीं होगा। वर्ष में दो-चार बार ही ऐसी स्थिति अावेगी, जब २० घटी प्रमाण या इसके लगभग तिषि मिल सकेगी, प्रत्तः अधिकांश व्रतों में उदयकालीन तिथि को छोड़ अस्तकालीन तिथि ही ग्रहण करनी पड़ेगी।
___दूसरी प्रापत्ति तृतीयांश मात्र ब्रततिथि मानने में यह भी आती हैं कि प्रोषधोपवास करने वाले का प्रत्येक पर्व सम्बन्धी प्रोषधोपचास कभी भी यथासमय पर नहीं होगा । क्योंकि प्रोषधोपवास के लिए एकाशन की तिथि का विधान है, उपवास