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व्रत कथा कोष
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भी सूर्योदय काल में छः घटी व्रत करने वाले को दोनों
यहां दो अष्टमियां हुई हैं । प्रथम अष्टमी भी पूर्ण है और द्वितीय अष्टमी को प्रमाण होने से व्रत के लिए ग्राह्य माना है; अतः यहां अष्टमियों को उपवास करने पड़ेंगे । नवमी का दिन अष्टान्हिका व्रत में पारणा का है, यदि दो नवमी पड़ जाय तो दो दिन लगातार पारणा करनी होगी । कुछ लोग बढ़ी हुई तिथि को उपवास ही करने का विधान बतलाते हैं । सिद्धचक्र विधान के करने में भी वृद्धिंगत तिथि को ग्रहण किया गया है अर्थात् आठ दिनों के स्थान में नौ दिन तक विधान करना चाहिए अधिक दिन तक विधान करने से अधिक फल की प्राप्ति होगी ।
जो लोग यह आशंका करते हैं कि नियत अवधि के अनुष्ठान और व्रतों में अवधि का उल्लंघन क्यों किया जाता है ? यदि अवधि का उल्लंघन ही अभीष्ट था तो तिथि क्षय के समय अवधि स्थिर रखने के लिए एक दिन पहले से व्रत करने को क्यों कहा ?
इस प्रश्न का उत्तर आचार्य ने बहुत विचार विनिमय करने के उपरान्त दिया है | आचार्य सिंहनंदी ने बताया कि यों समस्त व्रतों का विधान तिथि के अनुसार ही किया गया है । जिस व्रत के लिए जो विधेय तिथि है, वह व्रत उसी तिथि - में सम्पन्न किया जाता है, परन्तु विशेष परिस्थिति के भ्रा जाने पर मध्य में तिथि क्षय की अवस्था में नियत अवधिवाले व्रतों की अवधि को ज्यों की त्यों स्थिर रखने के लिए एक दिन पहले करने का नियम है । तिथिवृद्धि में विधेयतिथि की ही प्रधानता रहती है ।
अतः एक दिन के बढ़ जाने पर भी नियत अवधि ज्यों की त्यों स्थिर रहती है । नियत अवधि के व्रतों में अवधि का तात्पर्य वस्तुतः व्रत समाप्ति के दिन से है । व्रतसमाप्ति निश्चित तिथि को ही होगी ।
उदाहरण – अष्टान्हिका व्रत की समाप्ति पूर्णिमा को होनी चाहिये । यदि पूर्णिमा का कदाचित क्षय हो और आगे वाली तिथि प्रतिपदा हो तो प्रतिपदा को इस व्रत की समाप्ति न होकर पूर्णिमा के अभाव में