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________________ व्रत कथा कोष [ ४१ १४ चतुर्दशीगत तिथि हुई । शेष अंशादि ३/१३/३० वर्तमान तिथि पूर्णिमा का भुक्तभाग हुआ । इसे १२ अशों में से घटाया तो पूर्णिमा का भोग्यभाग अंशादि ८/४६/३० हुमा । इसकी विकलाए बनाई तो ३१५६० हुई। चन्द्रगति कलादि ७८७/५ में से सूर्यगतिकलादि ६१/२३ को घटाया तो गत्यन्तर कलादि ७२५-४२ हुमा । इसकी विकलाए बनाई तो ४३५४४ हुई । अब त्रैराशिक की ६० घटी चन्द्रमा की आपेक्षिक गति ४३५४२ विकला है, तो कितनी घटी में उसको आपेक्षिक ३१५६०+६० गति ३१५६० विकला होगी ? अतः ३१५६ = घटयादिमान ४३/३२ हुमा । ४३५४२ अर्थात् पूर्णिमा का प्रमाण ४३ घटी ३२ पल पाया। इसप्रकार प्रतिदिन का स्पष्ट तिथिमान कभी ६० घटी से अधिक हो जाता है, जिससे तिथि की वृद्धि हो जाती है, क्योंकि अहोरात्र मान ६० घटी ही माना गया है। अतः एक ही तिथि दो दिन भी रह जाती है। उदाहरण के लिए यों समझना चाहिये कि रविवार को प्रतिपदा का स्पष्ट मान ६७/१० माया । रविवार का मान सूर्योदय से लेकर सूर्योदय के पहले तक ६० होता है, अतः प्रथम दिन ६० घटी तिथि चौबीस घण्टे तक रही, शेष ७ घटी और १० पल प्रमाण प्रतिपदा तिथि अगले दिन अर्थात् सोमवार को रहेगी शिष्य का प्रश्न तिथिवृद्धि होने पर नियत अवधि के व्रतों की तिथिसंख्या निश्चित करने के लिए है। तिथिवृद्धि होने पर व्रततिथि की व्यवस्था : पुनरष्टान्हिकामध्ये तिथि वृद्धिर्यदाभवेत् । तदा नव दिनानि स्युर्व ते चाष्टान्हिकार्यके ।।१४।। सिद्धचक्रस्य मध्ये तु या तिथिव द्धिमाप्नुयात् । तन्दिधिस्साधिका कुर्यादकि स्याधिकं फलम् ॥१५॥ . अर्थ---यदि अष्टान्हिका व्रत की तिथियों की बीच में कोई तिथि बढ़ जाय तो व्रती को नौ दिन तक अष्टान्हिका व्रत करना चाहिए। सिद्धचक्र अष्टान्हिका के तिथियों के मध्य में तिथि बढ़ जाने पर सिद्ध-चक्रविधान करनेवाले को नौ दिन तक
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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