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वोरस्तुति
( वीर जिनेन्द्र के छब्बीस नाम )
(१-४) जगत् के जीवों के बंधु, भव्यजन रूपी कुमुदिनी को विकसित करने के लिए चन्द्रमा के समान हिमवान् पर्वत के समान धीर जिनेन्द्र भगवान वीर को नमस्कार करके उनकी निम्न प्रचलित (प्रकट) नामों के द्वारा स्तुति करता हूँ
(१) अह (पुनर्जन्म को ग्रहण नहीं करने वाले) (२) बरिहंत ( कर्मरूपी शत्रु का नाश करने वाले ) (३) अरहंत ( पूजनीय ) (४) देव (५) जिन (६) वीर (७) परम कार्यणिक ( ८ ) सर्वज्ञ ( ९ ) सर्वदर्शी (१०) पारगामी ( 19 ) त्रिकालज्ञ ( १२ ) नाथ (१३) वीतराग (१४) केवल (१५) त्रिभुवन के गुरु (१६) पूर्ण (१७) तीनों लोकों में श्रेष्ठ (१८) भगवान (१९) तीर्थङ्कर ( २० ) इन्द्रों द्वारा वन्दनीय (२१) जिनेन्द्र (२२) श्री वर्धमान (२३) हरि (२४) हर (२५) कमलासन (२६) प्रमुख (बुद्ध) एवं इसी प्रकार के उनके अन्य अनेक गुणसम्पन्न नामों को जड़मति भी श्रुत के अनुसार जान सकता है ।
( १ प्ररूह )
(५) जन्म-मरणरूपी संसार के बीज को अंकुरित करने वाले कर्म को ध्यान रूपी ज्वाला से जलाकर संसार रूपी गहन वन में पुनः उत्पन्न नहीं होने के कारण हे नाथ ! बाप अरूह ( अ + ६ = नहीं उगने वाले अर्थात् पुनः जन्म नहीं लेने वाले ) हैं ।