SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरत्यो उपासनदशांगसूत्र में यह गुण निष्पन्न नाम देने की परम्परा और विकसित हई और उसमें श्रमण भगवान महावीर, आदिकर, तीर्थकर, स्वयंसंवृद्ध, जिन, नारक, बद्ध, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव, अहंत, जिन, केवली आदि नामों के उल्लेख मिलते हैं । आगे चलकर न केवल अपनी परम्परा में प्रचलिल गुणनिष्पन्न नामों का संग्रह किया गया अपितु अन्य परम्परा में प्रचलित उनके इष्ट देयों के नामों को भी संग्रहित किया गया-जिन पात नाम जिन सहस्र नाम आदि रचनाएं निर्मित हुई । इसी प्रकार की शैली का संकेत हमें भक्तामर स्तोत्र में भी मिलता है जिसमें आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की स्तुति करते हुए उनके लिए शिव, विधाता, शंकर, पुरुषोतम आदि विशेषण गुण निष्पन्न नाम घटित किये गये । दिक एवं बौद्ध ग्रन्थों में नाम साम्यता-- वैदिक परम्परा में विष्णु को पुरुषोत्तम भी कहा गया है। पुरुषपुण्डरीक नाम भी वैदिक परम्परा में विष्ण के लिए विशेषण के रूप में प्रयक्त होता है। पुरुषवर, पुरुषपुण्डरीक एवं लोकानाथ शब्द विष्णु के लिए महाभारत में प्रयुक्त है। बौद्ध परम्परा के प्रन्थों में अंगुत्तर निकाय के अतिरिक्त महावीर विशेषणों को ही बृद्ध के विशेषण के रूप में प्रस्तुत करने वाला ग्रन्थ विसुद्धिमग्ग है। उसमें इन सब शब्दों की विस्तृत व्याख्या की गयी है। सर्वज्ञ एव सर्वदर्शी शब्द पालित्रिपिटक में प्राप्त होते हैं । पालित्रिपिटक में महावीर के लिए विशेषण के रूप में सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, १. उदासगदसाओ-मुनिगधुकर-पृ. १३-१४ ॥ २. महावीर चरित मोमांगा दालसुख मारपिया-पृ० २२ ३. (अ) बही-पु. २९ (ब) तुलना. . 'सो भगवया अरह ...... पुरिसदम्मसारथी सत्या देवमण स्माण बुद्धो भगवा-अनुत्तरनिकाय-३।२८५ ।। ४. विशुद्धिमार्ग-पु. १३३ ।। (४) "मञ्चषण सम्बदस्ताची अपरिमेसं प्राणदस्सन पटि गानानि"--महावीर चरितमीमासा० पृ. २३ ।। ५. महावीर चरित मीमांना पु० २३ ॥
SR No.090540
Book TitleAgam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size789 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy