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________________ वीरत्यओ है ! इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें भी ग्रंथकार ने तीर्थंकर और इन्द्रादि देवताओं से किसी भी प्रकार की मोतिक कल्याण की कामना नहीं की है। केवल प्रन्थ की अन्तिम गाथा में कहा गया है कि सिद्ध मुझे सिद्धि प्रदान करें। देवेन्द्रस्तव की प्रथम गाथा में ही प्रथम तीर्थंकर ऋषम एवं अन्तिम तीर्थंकर महावी को नमस्कार किया गया है | अतः यह स्पष्ट है कि ग्रन्थकार ऋषिपालित के समक्ष २४ तीर्थकरों की अब. धारणा उपस्थित थी। इस प्रकार स्तुतिपरक साहित्य के विकासक्रम में 'देवेन्द्रस्तव' पर्याप्त प्राचीन सिद्ध होता है। स्तुतिपरक साहित्य में इसके पश्चात् 'चविंशतिस्तव' (लोगस्स-चोवीसत्यव) का स्थान आता है। लोगस्स का निर्माण तो चौबीस तीर्थकर की अवधारणा के बाद ही हुआ होगा । त्रीरत्थुइ, नमृत्यणं और देवेंदत्थओं इन तीनों ग्रन्थों की विशेषता यह है कि इनमें भक्त या रचनाकार अपने आराध्य के गुणों को स्मरण करता है। उनसे किसी प्रकार की लौकिक या आध्यात्मिक अपेक्षा नहीं रखता जब कि लोगस्स में माराधक अपने माराध्य से यह प्रार्थना करता है कि हे तीर्थंकर देव! आप मुझ पर प्रसन्न हों और मुझे आरोग्य, बोधिलाभ तथा सिद्धि प्रदान करें। ___ जहाँ तक प्रस्तुत बीरत्यको प्रकीर्णक का प्रश्न है इसमें महावीर की २६ नामों से स्तुति की गयी है । इसमें ग्रन्थकार ने अरूह, अरिहंत, अरहंत, देव, जिन, वीर, परमकारुणिक, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी. पारंगत, त्रिकालविज्ञ, नाथ, वीतराग, केलि. त्रिभुवनगुरु, सम्पूर्ण, विभवन में श्रेष्ठ, भगरान, तीर्थंकर, शक्रोन्द्र द्वारा नमस्कृत, जिनेन्द्र, वर्धमान, हरि, हर, कमलासन एवं बुद्ध इन छब्बीस नामों का व्युत्पत्तिपरक अर्थ करते हुए इन गुणों को महावीर पर घटित किया गया है और इसके ब्याज से उनकी स्तुति की है और अन्त में यह याचना करते हुए अन्य का समापन किया है कि कृपा करके मुझ मन्दपुण्यशाली को निर्दोष शिवपद प्रदान करें। स्तुतिपरक साहित्य में सम्भवतः लोगस्स ही प्रथम रचना है जिसमें याचना की भाषा का प्रयोग हुआ है । जैन दर्शन की तो स्पष्ट १. देवेन्द्रस्तव-गाथा ३१ । २. देवेन्द्रस्तय प्रकीर्णक-साधा ९ । ३. वीरन्थाओ-गाथा ४३ !
SR No.090540
Book TitleAgam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size789 KB
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