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________________ १३ भूमिका नन्दी एवं अनुयोगद्वार सूत्र जैन आगम ग्रन्थमाला ग्रंथाग--१ में दस प्रकीर्णकों के नाम इस प्रकार गिनाए हैं (१) च उसरण (श्री वीरभद्राचार्य कृत) (२) आउरपच्चखाण (श्री वीरभद्राचार्य कृत) (३) भत्त परिपणा :४) संधारण (५) तंदुलवेयालिय (६) चंदावेज्मय (5) देविदत्थय (८) गणिविज्जा (९) महापच्चरखाण (१०) वीरत्यव' । वर्तमान में हालांकि मान्य प्रकीणंकों की संख्या दस ही है परन्तु उनके नाम में एकरूपता नहीं पायी जाती है। किन्हीं ग्रन्थों में मरणसमाधि एवं गच्छाचार के स्थान पर चन्द्रवेष्यक एवं वीरस्तव को गिना है तो निश्री प्रन्यों में देवेन्द्ररतबीसद को सम्मिलित कर दिया गया है, किन्तु मंस्तारक की परिगणना नहीं करके उसके स्थान पर गच्छाचार और मरण समाधि का उल्लेख कर दिया गया है। इनके अतिरिक्त एक ही नाम के अनेक प्रकीर्णक उपलब्ध होते हैं यथा--आतुरप्रत्याख्यान नाम से तीन प्रकीर्णक उपलब्ध हैं। वर्तमान में यदि प्रकीर्णक नाम से अभिहित ग्रन्थों का संग्रह किया जाय तो निम्न बावीस नाम प्राप्त होते हैं (१) चतुःशरण (२) आतुरप्रत्याख्यान (३) भक्तपरिशा (४) संस्थारक (५) तंदुलवैचारिक (६) चंद्रवेघ्यक (७) देवेन्द्रस्तक (८) गणिविद्या (९) महाप्रत्याख्यान (१०) वीरस्त (११। ऋषिभाषित (१२) अजीवकल्प (१३) गच्छाचार (१४) मरणसमाधि (१५) तित्योगालि (१६) आराधनापताका (१७) द्वीपसामर प्रज्ञप्ति (१८) ज्योतिषकरण्डक (१९) अंगविधा (२०) सिद्धप्रामृत (२१) सारावली (२२) जीवविभक्ति। व-आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीला, पृष्ठ-४८६ स-जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, पुष्ट-३८८ द-देवेन्द्रस्ताव प्रवीणक-भूमिया, पृष्ठ-१२ १. पइश्णवसुताई, मुनि पुण्यविजय जी, प्रस्तावना, पृष्ठ-२० २. पहण्णयमुत्ताई, मुनि पुण्यत्रि जय जी, प्रस्तावना, पृष्ठ १९ ।
SR No.090540
Book TitleAgam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size789 KB
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