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________________ СК%EkrEkstremЖү. समायाता-तवाई प्रावृधि खितः। एक्दा जिबदत्तोपि चिंतयित्वा स्वचेतसि ॥४६४ ॥ तरकस्य पुत्रस्य भयाद्रभृतं घट । समीपे र यमिनो भूमि खनिरया चाक्षिपत्तदा ॥ ४६५ ॥ (युग्मं) तं दृष्टयान पुत्रो निष्कास्यान्यत्र क्षिप्तवान् । मुनिदर्श तत्सर्वं विचित्र लोभसंभवं ॥ ४६६ ॥ चातुर्मासे गतं ध्यानी पिजदार महीतलं । पश्चात्स श्रष्टिना तान दृष्टो रजसद्धटः ॥४७॥ तदा विचारयामास मुनिश्वारोऽथ पाने च । तया त्या स्वभृत्यान से प्रेषयामास सर्वतः ॥ ४६८ ॥ एकमार्श्वगतः सोऽपि मां दृष्ट्वा हर्षतो भृशं । नीत्या गेहे समायातोऽलीलपन्मा पुतौति सः ॥ ४६६ ॥ कयामेकां शुभां नाथ ! कथय त्वं ममाप्रतः । भया हाताभिप्रायेण प्रत्यपा| कर जिनदत्तने मरे समीपमें जमीनके अन्दर एक गढ़ा खोदा एवं ज्वारी पुत्रके भयसे रत्नोंका भरा घड़ा उसने लाकर रख दिया ॥४६४-४६५॥ जिनदजिससमय यह घड़ा रख रहा था उसका viपुत्र देख रहा था। जिनदत्त जब चला गया उसके पुत्रने वह घड़ा वहांसे उखाड़ कर अन्यत्र गाढ़ दिया । मैं उस लोभसे जायमान समस्त विचित्र कार्यको चुप चाप देखता रहा था ॥ ४६६ ॥ चौमासेके समाप्त हो जानेपर में वहांसे चल दिया और पृथ्वीतलपर विहार करने लगा। मेरे पीछे सेठ जिनदत्तने जब जमीन खोदी और वह घड़ा न मिला तो वह विचारने लगा. मेरे रलोंके घटको चुराने वाले मुनि हैं या नहीं ? क्योंकि सिवा मुनिराजके अन्य किसीने से भी वह घड़ा नहीं देखा था खैर पता लगाकर उनसे पूछने में कोई हानि नहीं बस उसने चारो ओर मेरे खोजनेके लिये सेवक भेज निये । एक मार्गपर खयं भी मुझे खोजनेके लिये चल दिया।भाग्य bi से मैं मिल गया मुझे देखकर बह बड़ा प्रसन्न हुआ । भक्तिपूर्वक मुझ घर लेगया एवं मुझसे विनय ) पूर्वक इसप्रकार कहने लगा-स्वामिन् ! मेरे सामने कोई शुभ कथा कहिये । मैं उसका अभिप्राय | समझ गया था इसलिये मैंने गंभीरता पूर्वक यह कहा--भाई जिनदत्त ! तुम्हीं कोई कथा कहो! मैं आनंदपूर्वक उसे सुनगा मेरे ये वचन सुन अपने मनके भावोंको व्यक्त करता हुआ जिनदत्त कहने लगा--अच्छा भगवन् ! आप ने मेंसु कहता हूं REYaheपपपपका
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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