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________________ पपपपपपरयरचययख ri भो। पूछयत्व भवान रूबीयास्तामाशीतकान मुनि ॥ ३३ - ॥ तदा गंमीडयोषण मुनिराजो जगाइ त । भृगु राजन ! सम्वापा दीपेऽत्र भारते ॥ ३६॥ मार्य पूरकांतवेशे सरपुर पुरे। मित्रनामा महाराजा श्रीमती: तस्य भामिनी ॥ ३४ ॥ तयोः पुत्रः सुमिबत शल्यः प्रधानो मतिसागरः । तस्यैव रूपिणी कांता सुरेणस्तनुजोऽजनि ॥ ३४१ ॥ सुमित्रो मंत्रिपुत्रेण साय मोडति सर्वदा । संताजापति तं नित्य भयो पात्य व महिमिः ॥ ३४२ ॥ एकदा जलकेल्यर्थ दीर्घिकायां ममज्जतुः । प्रम दसमाकीणों निमग्नो जलमध्यतः ॥ ४३ ॥ सविधेको विशालाक्ष सुमित्रो गज्यमाप वै । मक्कयत्तदा स्थति सुषेणः संभ्रमादिदं ॥३४४ । कौमारत्वेऽप्य राजा मे. संतापितास्त । मुदिष्पत्यधिक भूने संप्रतीत्य विचित्य सः । मनि नया बने गत्वा प्रवनाज पपाद सः ॥ ३४५ ॥ ( षट्पदी) | था और उन दोनोंके सुमित्र नामका पुत्र था। राजा मित्रके प्रधान मंत्रीका नाम मतिसागर । था उसकी स्वीका नाम रूपिणी था और उससे सुषेण नामका पुत्र उत्पन्न था। राजपुत्र सुमित्र मंत्रिपुत्र सुषेणके साथ सदा क्रीडा करता था । सरलचित्त मंत्रिपुत्रको वह खेलते समय सदा | संताप दिया करता था एवं जमीन पर डालकर खूब मुक्कोंकी मार मारता था ॥ ३३७–३४२॥ एक दिन वे दोनों बाबड़ीपर जलक्रीड़ा करनेके लिये गये एवं कमलके पत्तोंसे मुंह ढांककर | जलके भीतर पेठ गये॥ ३४३ ॥ कदाचित् विवेकशाली और विशाल नेत्रोंके धारक राजपुत्र सुमित्रको राज्यकी प्राप्ति हो गई। उसे राजा जान मंत्रिपुत्र सुषेण मन ही मन भ्रमसे यह विचार D करने लगा | यह राजा सु मित्र जिससमय कुमार था उस समय भी मुझे मर्यादासे अधिक सन्ताप देता Hथा। अब यह राजा होगया है इसलिये यह अब और भी संताप देगा, बस ऐसामनमें पक्का विचार कर वह सीधा वनमें मुनिराज के पास चला गया। उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार किया दिगंबरीदोक्षा धारण कर ली एवं सिद्धांत ग्रन्थोंका अध्ययन करने लगा ॥ ३४४–२४५ ॥ सु मित्र खिलाड़ी स्वभावका मनुष्य था सुषणसे वह किसीप्रकारका द्वष नहीं रखता था किंतु उसे बड़े प्रेमसे देखता ЕКККККККККККККККККК
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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