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प्रतः॥ २५७ ॥ मरतो देशमध्ये हि प्रसिद्धीभूयमागतः । चित्रसत्यलया लोकान् जयन् सदने स्थितः ॥ २५८ ॥ सद्युत सिंधुदेशे व विशाला नगरी मता। घटकाख्यः पतिस्तस्य सुभद्रा महिषी मता ॥५६॥ सस्थैव सप्तसत्पुल्यो वियोष्टयः स्मरवल्लभाः। यासा मध्ये मियादत्ता सिद्धार्थाय सुभभुजे ॥ २६ ॥ द्वितीया च पिनाकाय तृतीया दशरथाय च । प्रभावती चतुर्थी तु महानुदयिने तथा । २६१ ॥ कुमारिका हि विद्यते तिस्त्रः कायाः प्रभाभरा: । एकदा तन चायातचित्रदरताभिधः ॥ १६२ ।। रूपं यत्सप्तपुत्रीणां पट्ट फुत्वा प्रिय वत्स ! जिस वरके मागनेके लिये तुम्हारी रुचि हो उस वरको मागो मैं तुमसे प्रसन्न हूँ।
उत्तरमें भरतने कहा महामाता ! मुझे इसप्रकारकी चित्रशुद्धि प्रदान करिये जिस चित्रद्धिकी। -कृपासे विना देखे हुए पदार्थको भी पटपर अङ्कित कर सकू । तथास्तु, कह कर महाविद्या सिद्धि हो ।
गई। उस महाविद्याके प्रभावसे चित्रकार भरतकी सारे देशमें ख्याति हो गई एवं अपनो चित्रकलासे समस्त लोकको आनंदित करता हया वह सानंद अपने घर रहने लगा ॥ २५५–२५८ ॥ 6 अनेक सज्जनोंसे व्याप्त सिंधु देशमें एक विशाला नामकी नगरी है। उस समय उसका पालन
करनेवाला राजा चेटक था और उसकी मुख्य पटरानी सुभद्रा थी। महाराणी सुभद्रासे उत्पन्न सात पुत्रियां थीं जो कि बिंबाफलके समान लाल ओठोंकी धारक थीं और कामदेवकी परम प्यारी, थीं। सबसे बड़ी पुत्रीका नाम प्रियादत्ता था और उसका कुण्डलपुरके स्वामी नाथबंशीय राजा सिद्धार्थके साथ विवाह हुआ था ॥ २५६-२६० ॥ दूसरी कन्या मृगावतीका विवाह वत्स देशके 2 rd कौशांबीपुरके स्वामी महाराज पिनाकके साथ हुआ था। तीसरी कन्या क्सुप्रभा थी और उसका
विवाह दशार्ण देशके हेरकच्छपुरके स्वामी राजा दशरथके साथ हुआ था तथा चतुर्थ कन्या प्रभा-1 व का विवाह कच्छदेशक रोरुकपुरके स्वामी महाराज महानुदयीके साथ हआ था । वाकी ज्येष्ठाबादना और चेलना ये तीन कन्या अभीतक अविवाहित थीं। प्रसिद्ध चित्रकार भरत घूमता २ एक दिन विशाला नगरीमें आ पहुचा। एक पट्टपर उसने सातो कन्याओंकी तसवीर अंकित की।