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मल
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भुवनमहिमा तम्मुतकीर्तिः || २०१ || राजते रजनिनाथयशाः की तत्स्वोदयनगाहिमदीप्तिः । तनाटककुर्क लागदो रत्नभूषण महाकविराजः ॥ २०२ ॥ श्रीमल्लोहाकरे भूरपरनपुरवरे हर्षनामा वरीयान् तत्पत्नी साधुशाला गुणगणसदनं वारिकाख्यैव साध्वी । पुत्रः श्रीकृष्णासो रति इव तयोर्ब्रह्मचारीश्वरश्च सत्फीतों राजते वै वृष्भजिनदार भोजपट्वात्समानः । २०३ | मङ्गलैर्मकरकेतुदीतिभिर्वर्णभिः सह मया कृतोऽयकं । ग्रन्थ एवं ! विदुषां सुखप्रदः शोधयन्तु विबुधाः खराः १२०४ | गुजरे जनपदे पुरे कृतः कल्पवल्य भिध एव सादरात् । वर्धमानयशसा मया पुरोः पत्कजाहितसुचेतसा ध्रुवं ॥ २०५ ॥ मेरुभूधरपतिः खतारका सन्ति सागरधरा नभोमणिः । तावदेव विदुषां मनोऽतरेऽलंकृतः सततभेव भातु मे ॥ २०६ ॥ खनिसंख्यितसान्वितोऽधिको वेदषट्मनित काव्यरा जिभिः । पण्डितेतिविकारवर्जितः सलिखाप्य पटनाथ दीयतां ॥ २०७ ॥ देवर्षिषट्चन्द्रभितेऽथ वर्षे पक्षेऽसि मासि नभस्पले मे । एकादशीशुमृगर्क्ष योगे श्रीव्याधिते निर्मित पत्र एव ॥ २०८ ॥ इति श्री विमलनाथपुराणे भ० श्रीराभूषणान याल का स्वष्टा कृष्णदासविरचितं ब्रह्ममंगलदास सहाय्य सापेक्षे निर्वाण नाटक मेरुध्यानोपसर्ग मेरुमंदर निर्धाणनिरूपणो नाम दशमः सर्गः समाप्तः ॥ १० ॥ दास था जो कि चंद्रमा के समान कांशिले शोभायमान थे ब्रह्मचारी थे उनकी सहायता से यह कल्याण प्रदान करनेवाला ग्रन्थ रचा गया है। सज्जन विद्वानोंसे यह प्रार्थना है कि जहां इसमें त्रुटियों रह गई हो उन्हें शुद्धकर पढ़ और पढ़ावें ॥२०१ || गुजरात देशमें एक कल्पवल्ली नामका नगर है उसी नगर में बैठकर बढती हुई कीर्ति से शोभायमान और गुरुके चरण कमलोंके भक्त मैंने इस ग्रन्थका बड़े आदरसे निर्माण किया है | २०२ | जब तक संसार में मेरुपर्वत नक्षत्र समुद्र तारे समुद्र पृथ्वी सूर्य आदि पदार्थ विद्यमान रहें तब तक यह ग्रन्थ भी विद्वानोंके हृदयका अलंकार वन सदा शोभायमान है || २०३ || तीन हजार व्यालीस श्लोकोंसे शोभायमास यह ग्रन्थराज विमलनाथ पुराण विद्वान पंडितों को अवश्य लिखाकर देना चाहिये ॥ २०४ ॥ श्रावण वदी एकादशी संवत् १६७४ सोलह सौ चौहत्तर जब कि मृगर्च्य योग नित्य रूपसे विद्यमान था उससमय यह ग्रन्थ पूरा हुआ था ॥ २०५ ॥
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