SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वमानले ३१७॥मारयित्वा रं ननं यामिनीत्वा धने गृहे । नक' सुतो विचार्यत्यं पापोयानन्यवंचकः ॥१५८३ मध्यरात समुत्थाय हरप्रांत्या जबान सः । अन्य पार्थ ततः सन जगाम सत्वरं शठः॥ १५ ॥ पाश्चात्यप्रहरे राजजागार हरस्तदा। स्वांते दृष्ट्वा सं विततके सः॥१६॥ महोभाव मझोत्या पांथोऽयं मारितो ध्रुवं । तिष्ठयं चेदर' ताई नेऽपवादो भविष्यति १६१ ॥ संसर्गेण बरस्पेय याति कीर्तिश्विरं कृता । बंधनं ताड़नं चैत्र पञ्चत्य सुलभ भवेत् ॥ १६२ ॥ विमृश्येत्य चवाठाशु हर IN शिवंतातुरः स च । गत्य व स्वपुरा पर्ने विचवारेति वेतसि ॥ १६३ ॥ विष्ठापयामि के सभ्यं धर्माधर्मज्ञमित्वहो । विचार्य मम पावें धर्म और अधर्मके जानकार किस महापुरुषसे में अपना यह हाल कहूं । वह सीधा मेरे पास आया क्योंकि में राजा था और सारा वृतांत उसने मुझसे कह सुनाया। मैंने पापी भद्रको बुलाया rd कठिन दंड दिया और नगरसे बाहिर निकाल दिया ॥ १५७-१६२ ॥ मेरे द्वारा दिये गये दंडसे भद्रमित्रको बड़ी लज्जा आई। बनमें जाकर किसी मुनिराजके समीप भद्रने दिगंवरी दीक्षा धारण IN करली। मुनि वन वह क्रोध पूर्वक संयमको ओराधने लगा। आयुके अन्तमें वह मरा और विद्याdधर विद्युन्माली होगया ॥ १६३ ॥ पहिले भक्मे जो उसने मुझे दंड दिया था उसोसे जायमान रके संवन्धसे इसने मेरे ऊपर यह उपसर्ग किया है इसलिये वैरका यह भयंकर फल देख किसीको किसीके साथ बर नहीं करना चाहिये ॥ १६४ ॥ | विजयाध पर्वतकी उत्तर दिशामें एक श्रीपुर नामका नगर है जोकि महा मनोहर स्त्रियोंसे - शोभायमान और शोभामें गंधर्व नगरको उपमा धारण करता है । उस पुरका स्वामी भूपाल नामका राजा था जो कि अपने तेजसे शत्रुओंको भयभीत करनेवाला था । उसको रानीका नाम ललांगी था IG जो कि उत्तम नेत्रोंसे शोभायमान थो इन दोनों राजा और रानीके एक 'रुर्वक्षी' नामको कन्या | थी जो कि महा मनोहर थी। तपे सोने के समान रंगको धारक, सुवर्णके घड़ोंके समान स्तनोंसे AAAAAAAAAAAYEE कर
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy