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________________ MarwarKFR मल २३४ ॥ मुक्त्या पाति यदा हिलिपादेषु त धबन्ध सः । गाड्मया देव! तदा क्रोधारुणेक्षणः ॥ १३५ ॥ तदेव केवलोत्पत्तिः प्रादुरासीत् गणेशिनः। लोकालोकामलप्रायदर्शिनी सवंगा ध्रुवं ॥१३ मत्वा फेवलसंपूति मेरोराखण्डलादयः । आगत्य चकरा नंदादुत्लवं अपराधिणः ॥ १३७ ।। शकादेशकलोत्पीटत्रयायत सुरासुराः। किंन्ना सन्तरा ने मुर्भूधरस्थ हरिनु वा ।१३८ गद्य9 पद्यादिभिः स्तुत्वा नत्वा तत्पादपङ्कज । स्थितास्ते सर्वतो भांति इंसाः क्षीरांवुधाविध ॥ १३६ ॥ शक्रोऽचलत्वमालोक्य मेफनाम्नो व ज्योतिषियोंको आश्चर्य करनेवाला था। देव बैड़यने शीघ्र ही अवधिज्ञानकी ओर उपयोग लगाया। महामुनि मेरुपर विघ्नका होना जान लिया एवं तत्काल खङ्ग लेकर विद्युन्मालीके पास आ झपटा। B॥ १३२–१३५ ॥ मुनिराज पर अत्याचार करते देख देव बेडर्य विद्युन्मालीके ऊपर मेघके समान गर्जा, अनेक दुस्सह वचनोंको कहकर तर्जा एवं मारनेके लिये हाथमें खङ्ग तयार कर लिया। देव बैडूर्यका यह भयङ्कर रूप देख विद्याधर विद्युन्माली डरा। मुनिराजको छोडकर वह दो तीन ही कदम भाग कर गया था कि क्रोधस लाल २ नेत्रोंके धारक देव बेंडू र्यने मजबूत सांकलसे उसे IN मजबूतीसे बांध लिया ॥१३६–१३७॥ इधर बैड यं देवने तो विद्याधर विद्युन्मालीकी यह दशा की PA उधर मुनिराज मेरुको केवल ज्ञान होगया जो कि लोक अलोकके समस्त पदार्थों को निर्मल रूपसे | प्रकाश करनेवाला था और सर्वगत था ॥ १३८॥ मुनिराज मेरुके केवल ज्ञानकी उत्पत्तिका हाल | इन्द्र आदि देवोंको भी ज्ञात होगया। जिससे जय जय शब्दोंके साथ उन्होंने सानंद मुनिराजके A केवल ज्ञान कल्याणका उत्सव मनाया। इन्द्रकी आज्ञानुसार तिखने सिंघासनसे शोभायमान गंध कुटीकी रचना कर दीगई। उसमें विराजमान मुनिराज मेरुको सुर अस्तुर किन्नर और राजा आदि PS महापुरुष नमस्कार करने लगे।महामनोहर गद्य पद्योंमें मुनिराजकी स्तुति की। चरण कमलोंकी वंदना की एवं जिस प्रकार क्षीर समुद्र के चारों ओर हंस आकर विराज जाते हैं उस प्रकार वे मुनिराजके | IYAVIER
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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