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________________ | वृषास्पदं ॥८७t अतोऽई निजसौख्याय खामिधर्मस्वतः प्रिये! | पृच्छामि नपति स्वीय विवेदय निवेदय ॥४८॥ अत्याग्रहयशेनाह माली सं शितच्छई। सय गिरी सवाधीशः समास्ते निशि संवरन् । ८8 श्वेतपतो गतस्तत्र सार्य पत्न्यागि वारितः। अमे स्थित्वेक्षते यावसाघटसोऽपि समाययौ ॥१०॥ मन्वयुकत्युलकर कोऽसि कस्मारसमाटितः कास्ति बासस्वहि किमर्थ चागमोऽत्र वा।। ११॥ काकारियच सो निशम्योवाच वेगतः । तथास्मि किंकरे राजन् ! त्वत्सेवाय समागतः॥ १२ ॥ मराठीय वचः श्रुत्वा तुलो पधवांचराड भृशं । साधनोत्या गिगै याति दर्या विषकानने ३ एकदा वक्षभिवंसं जगादेति विभीकरः । किं भुनक्षि स्पर्क येन सुन्दो दृश्यसे मृदुः॥ १४ ॥ तदा प्रादति तं पत्रो स्थान में मानसे विमो ! तासामरसानां चमकर भुनज्म्यहं ॥ १५॥ दर्शय प्रह RIYYYI से स्वामीको पहिचानना चाहता हूं हमारा स्वामी कौन है। तुम जल्दी बतलाओ ! ॥८६॥ अपने स्वामी हंसका जब यह अति आग्रह देखा तो उसने यह उत्तर दिया-सह्य पर्वत पर रात्रि में घूमता | हुआ तुम्हारा स्वामी रहता है ॥ ३० ॥ शाम के समय हंस अपने स्वामीको खोजने चला यद्यपि हंसिनीने बहुत मना किया परन्तु उसने एक न सुनी। वह पर्वत के ऊपर पहुंचा ही था कि उसी समय जिसको उसका स्वामो बनाया गया था वह भी वहां आगया ।। ६१ ॥ उल्लको हंसका स्वामो हंसिनोने वतलाया था। उल्लने जिस समय हंसको देखा-इस प्रकार पूछना प्रारम्भ कर दिया- तुम कौंन हो कहांसे आये हो कहा तुम्हारा स्थान है और यहां किस लिये आये हो जल्दो | बोलो ! उल्लके ऐसे वचन सुन हंसने कहा- राजन ! मैं आपका सेवक हूं आपकी सेवा के लिये यहांपर आया हूं। इसके इस प्रकार वचन सुन उल्लू बड़ा प्रसन्न हुआ और भयङ्कर बनमें पर्वत को गुफामें बड़े आदरसे लिया गया ॥ ६१-६४ ॥ एक दिन उल्लूने हंससे पूछा भाई तुम बड़े on सुन्दर और कोमल जान पड़ते हो कहो तो तुम खाते क्या हो! उत्तरमें हंसने कहा
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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