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________________ PALAYAYAYA पत्रपYAAYAN लेखालिस्त घात्य नातिक्षयात्सर्वदेवेंद्रा चितपटकः ॥ ७८ ॥ संसारसागरसमुचरणप्रक्षीणः । कर्मातलाय लिशमैकप्रनायमानः किरीटमणिप्रभाभिराश्लिष्टपाद इविजिद्विमोऽषताः ॥ ७६ ॥ कृत्याष्टकर्मविलयं गणसेव्यमानो व्युत्पाद्य केवलविमालिम विबोध्य | यांनि नितरां शियमाप दिव्यसम्मेदभूधरत विमलोष्णरश्मिः ॥ ८० ॥ विहार संबोधितजीवलोकपो जगाममोहाद्विपविः परं १६ स्वयंभुवा शुद्धसमाधितत्स्रो जिनोऽर्चितः केवलवोधलोचनः ॥ ८१ ॥ ध्यानको आश्रय किया । समता योगसे उन्होंने अयोग गुण स्थानमें पदार्पण किया एवं जिस प्रकार रोगके नाश हो जानेसे रोगी स्वास्थ्य लाभ करता है उसी प्रकार वे भगवान विमलनाथ भो स्वस्थ हो गये भगवान विमलनाथ आषाढ़ वदी अष्टमीको मोक्ष पधारे थे इसलिये उसी दिन से उस अष्टमीका नाम कालाष्टमी पड़ गया और लोग उसे पूजने लगे ॥ ७७ – ६८ ॥ घाति अघाति दोनों कर्मों के नाश होजानेपर सर्वज्ञ जिनेंद्र वे भगवान विमलनाथ मोच शिलापर जाकर विराजमान होगये और बड़े बड़े देवेन्द्रों की पूजाके स्थान बन गये ॥ ७६ ॥ जो भगवान विमलनाथ जीवोंको संसार रूपी समुद्रसे पार करने वाले हैं । कर्मरूपी अग्निको बुझानेके लिये मेघ स्वरूप हैं। देवेन्द्रोंके मस्तकों में लगी हुई नील मणियोंसे व्याप्त चरणोंसे शोभायमान हैं और कामदेवके जीतनेवाले हैं वे भगवान विमलनाथ हमारी रक्षा करें ॥८०॥ जिसप्रकार सूर्य अंधकार का नाश करने वाला है उसी प्रकार भगवान विमलनाथ भी कर्मरूपी अन्धकारके नाश करनेवाले हैं। जिसप्रकार सूर्य ऋषिगणोंसे सेवित रहता है उस प्रकार भगवान विमलनाथ भी मुनि आदिके गणोंसे सेवित हैं । जिस प्रकार सूर्य, प्रभासे मंडित है उस प्रकार भगवान विमलनाथ भो केवल ज्ञानको प्रभासे after हैं एवं जिस प्रकार सूर्य कमलोंको खिलाकर अस्ताचल पर मस्त हो जाता है उस प्रकार おやおやかでお求 प
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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