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________________ प्रभफ़ 昼に看板肥前に लोकाकारां करें कृत्वा काष्ठा विपरीतयेत् ॥ २४३ ॥ व्याधोसौ पापतो मृरया न्यविशत् सप्तम मुवं तद्वं गदितु तत्र कः शको ति जिन बिना ॥ २४४ ॥ मुमो जझे लीना सफल बतागमनी । दुराच्या सर्वार्थाप्तिरिय च पशतामेति ननु न । जगत्स्थामा रामा परमपदमायाति जयतो यतो धैर्यध्यानाटिकमिति यस चित्र शमवतां ॥ २४५ ॥ जितेन्द्रियाणां न भवेद राज्य परं पद स्वर्भ न सौख्यं । जितेंद्रियाणां न भवेद राज्यं परं पदं स्वर्यनरेन्द्रसख्यं ॥ २४६ ॥ इति श्रीविमलनाथपुराणे भट्टारक श्रीरत्नभूषणानामालङ्कार विद्व० हर्यश्रीरिकान्वयोदारमानस राजहंस बह्मचारीश्वरकृष्णदासविरचिते ब्रह्ममङ्गलदास साहाय्यसापेक्ष रामसा बररत्नमालाच्युतदेव पूर्णचन्द्रवररत्नायुधाच्युतदेव सिंह सेन बरबज्रायुध सर्वार्थसिद्धिगमन वर्णनो मामामः सर्गः ॥ ८ ॥ मरकर सातवे नरक गया। सातवें नरकका इतना भयङ्कर दुःख है कि उसे भगवान जिनेंद्र के सिवाय कोई नहीं कह सकता ॥ २४३ ॥ मुनिराज वज्रायुध पर जब समस्त सुखोंकी स्थान और कठिनता से प्राप्त होनेवाली सर्वार्थ सिद्धिरूपी स्त्री भी आसक्त होगई तत्र संसारकी स्त्रियोंका मुग्ध होना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि जो शांति स्वरूप संयमी हैं उनको स्थिर ध्यानसे मोच सुख भी प्राप्त हो जाता है तब अन्य सुखों का प्राप्त होना आश्चर्य कारी नहीं ॥ २४४ ॥ जिन महा पुरुषोंने इन्द्रियोंका विजय कर लिया है उनके मोक्ष स्थान स्वर्ग और नरेन्द्रोंका सुख दुर्लभ नहीं किन्तु जिन्हें इन्द्रियोंने ही जीत लिया है उनके लिये मोक्ष सुख और नरेंद्र सुख सभी कुछ दुर्लभ हैं ॥ २४५ ॥ इसप्रकार भट्टारक रत्नभूषणकी आम्नायके अलंकारस्वरूप हर्षवारिकाके पुत्र उत्तम ब्रह्मचारी कृष्णदासद्वारा विरचित 'वृहत् विमलनाथपुराण में रानी रामदत्ता जीव रत्नभाला और अच्युतदेव, पूर्णचन्द्रका जीव रत्नायुध और अच्युतदव एवं सिंहसेनका tant सद्ध गमन वर्णन करनेवाला आठवां सर्ग सगाप्त हुआ ॥ ८ ॥
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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