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स्वामिन् ! सामकः पुत्रो राजनीति च वेद न ॥ १२६ ॥ विद्याभ्यासेन रामाणां सांगत्यं प्रकरोति न तत्किं देव तिवेदनः ॥ १२३ ॥ नृपं भ्रांतिगतं मत्था प्रोवाच मुनिपुङ्गवः । देशेऽस्मिन् पत्तनं भाति नरकुटाभिघ ं महत् ॥ नास्ता पता रणजित्सुधीः । तलव पत्तने श्रीलः कुटुम्बी तु गिलाइयः ॥ १२६ ॥ तस्यास्ति तुङ्गला रामा दुहिताभूत्तयोस्तु गमद्वाख्या मूलभे शुभे ॥ १३० ॥ पूर्वपापोदयासस्याः पिता माता सहोदराः । क्षयं प्राप्तास्तदा इ।स् || १३१ || कालेन साष्टवर्षी या जब दुःख मरार्दिताः । एत्रवारं बहती वै च
तं ब्रूहि संतो दि भ्रां
१२८ ॥ पती राणको
लागि भिक्षयात्रीवृद्ध सती भनुगामिनी । स्वोदरपूरणं ॥ १३२ ॥ एकस्मिन्वासरे काष्टानय
भगवन् ! मेरा पुत्र सुकोशल राजनीतिका रखमात्र भी जानकार नहीं है । अनेक सुन्दरी स्त्रियां उसके मौजूद है तथापि वह उनके साथ भोग विलास करना नहीं चाहता यह क्या वात है ? मुझे इस बातको बड़ी भारी चिन्ता है आप मेरी इस भ्रांतिको शीघ्र दूर करें क्योंकि भ्रांतिका दूर करना सज्जनोंका स्वभाव होता है ॥ १२६ -- १२७ ॥ राजा हरिवाहनको इसप्रकार चिन्तित देख मुनिराज इस प्रकार कहने लगे-
इसी कोशल देशमें एक नरकूट नामका विशाल नगर है । उसका स्वामी राजा राणकथा जो कि अत्यन्त प्रतापी था और रण में सदा विजय पानेवाला था । उसो नगरमें एक तुङ्गिल नामका गृहस्थ सेठ भी निवास करता था । १२८ – १२६ ॥ सेठ तुङ्गिलको स्त्रीका नाम तुङ्गिला था जो किसी साध्वी और अपने स्वामीको आज्ञाकारिणी थी । उन दोनोंसे उत्पन्न तुंगभद्रा नामकी पुत्री थी जो कि मूल नक्षत्रमें उत्पन्न हुई थी ॥ १३० ॥ पूर्व जन्मके तीन पापके उदयसे उसके बाप मा भाई सभी मर गये। धन भी सब किनारा कर गया जिससे वह भीख मांगकर अपना पेट भरने लगी ॥ १३२ ॥ जब वह आठ वर्षकी होगई तब वह दुखित होकर ईंधन ढोने लगी और बड़े कष्टसे अपना पेट भरने लगी ॥ १३२ ॥
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