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________________ PRAYERS meaamanar M । पप्रच्छति पुनर्मत्या कुमार: प्रीतिकृयति ॥१०॥ भो स्यामिन् सर्वधर्माणा प्रतानां च विशक्तिभिः । किं कर्तव्यं ब्रतं हि समस्य। सादरं सदा ॥११॥ धर्मरुपी राणेति कुमार भव्यमानस | तिथिपंचस कर्तव्यः प्रोषत्रो धर्मवेदिभिः ॥ ११॥ गृहाचारोऽभल: कार्य: स्त्रीपुष्पी चन्श्य शर्जिलः । सुखाय क्षेलशुद्धघमन्यधाचारहीनताः ॥ १२॥ स्त्रीपुष्यौ चेष्टय धर्मेण नरा यांत दरिद्रतां । रोगत्वं विशु तत्वं च विधर्मत्वं तमः पर॥ १३ ॥ देवा च गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयतस्तपः । न च विभिदेयं धर्मसोपानसिद्धये ११४ ॥ तथाभूता न शक्तिश्चेसहि मौन विधीयते । सप्तभेजिनः प्रोक्त पुनरुज्यते ॥११ वमने मैथुने हनाने मोजने मलमोसने लिये गया। वहांपर उस समय एक धर्मरुचि नामके मुनिराज विद्यमान थे। कुमार प्रीतिकरने - उन्हें भक्ति पूर्वक नमस्कार किया। सिंहाकार आसनसे उनके सामने बैठ गया एवं पुनः नम1% स्कार कर वह इस प्रकार पूछने लगा ___ भगवन् ! जो मनुष्य गृहस्थ हैं और ब्रतोंके धारण करनेकी परिपूर्ण शक्ति नहीं रखते उन्हें धर्म स्वरूप संपूर्ण ब्रतोंमेंसे कौनसा व्रत आचरण करना चाहिये । ॥ १०-११०॥ मुनिराज धर्मरुचिने कुमार प्रीतिङ्करको आसन्न भव्य समझ कर यह कहा—प्रिय कुमार ? जो मनुष्य धर्म के स्वरूपके जानकार हैं उन्हें चाहिये कि वे पांचों तिथियों में निर्मल रूपसे प्रोषधोपवास व्रतको धारण करें और स्त्रियोंके अंगका सर्वथा परित्याग करदें क्योंकि ऐसा करनेसे सुख प्राप्त होता है | और आत्माकी विशुद्धि होती है यदि प्रोषधोपवास के समय स्त्रियोंकी लालसा रक्खो जायगी तो - अनाचार माना जायगा ॥ १११-१२॥ यह निश्चय है जो पुरुष उत्कृष्ट रूपसे स्त्रियों के अभि| लाषी हैं वे दरिद्री रोगी मूर्ख और धर्मरहित पापी माने जाते हैं ॥ ११३ ॥ देव पूजा गुरुओंकी IM सेवा खाध्याय संयम तप और दान ये गृहस्थोंके छह आवश्यक कर्म वतताये हैं इनके करनेसे | मोक्षकी सीढी स्वरूप धर्मकी सिद्धि होती है ॥ ११४ ॥ यदि किसी पुरुष इतनी बातकी कानेकी TATERNEYSTERY Ent
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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