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६६ ॥ अतः सत्पात्रनिष्पन्नं शुद्धाहार धृतादिभिः । निश्चितं भक्षयेन्नागो नान्यत्फलफलादिक ॥१७ 11 कृत्याहार तथाभूतं न्यक्षिपत् कुंजराप्रतः । कुजरोऽपि जघासैंप आहार मिश्रित घृतः।१८॥ यदा रलायुधोराजा घिस्मयीभूयमागतः । जगाम सामजारूढो मनो हरवनेऽषनः || ६ || पनदन्त' मुनि तत्र नत्वावधिविलोचनं । गजवृसं समाख्याय तद्धे तु पृच्छतिस्म सः ।।१०।। मुनिः प्राह तदा भव्यपंकजालिदिघाफरः । सादरं शृणु राजेन्द्र प्रोच्यमानी मया कथां ।। १० ।। अन्न सम्बमति द्वीपे भारते भारते--रत । भारते भाति
दम निर्बुद्धि दीख पड़ता हैं ?। वैद्योंको इस वातका पता लग चुका था कि बनमें मुनिराज वदंत Ka को देखनेसे इसकी यह दशा हुई है इस लिये उन्होंने कोई भी विकार न बतलाकर यह कहाO राजन् ! कृपाकर हमारी बात सुनिये। यह हाथी मेघ विजय अत्यन्त दयालु है । बनमें जाकर - इसने किसी मुनिसे धर्मोपदेश सुना है इसलिये इसे जाति स्मरण होगया है अब यह शुद्ध मनुष्य
से बनाये गये और घृत आदिसे तयार किये गये भोजनको ही खा सकेगां अब यह पहिलेके समान फल फूल आदि नहीं भक्षण कर सकेगा ॥६४---६७ ॥ राजा रलायुधकी आज्ञासे शीघही बेसा आहार तयार होगया। तयार हो जाने पर हाथीके सामने रख दिया गया। हाथी भी उसे । शुद्ध जानकर चट खागया ॥ ६॥ हाथीको यह विलक्षण चेष्टा देख राजा रत्नायुधको बड़ा
आश्चर्य हुआ और वह मुनिराज वजदंतसे सब हाल जाननेके लिये शीघ्र ही हाथी पर चढ़कर |बनकी ओर चल दिया ॥ ६ ॥ वनमें जाकर उसने अवधिज्ञानी मुनिराज बजूदंतको नमस्कार कियो। हाथीका सब हाल कहा एवं इस बातकी प्रार्थना की कि हाथीकी ऐसी दशाका कारण क्या है ? मुनिराज बज्रदंत भन्यरूपी कमलोंके लिये सूय स्वरूप थे इसलिये उन्होंने यह कहाराजन् ! मैं सब हाल कहे देता हूं तुम ध्यान पूर्वक सुनो---
इसी जंवूद्वीपके सूर्यको कांतिके समान देदीप्यमान भरत क्षेत्रमें एक छत्रपुर नामका उत्तम
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