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________________ अतः कर्मविपावन नानायोनित्यमाश्रये । तत्सम्बन्धक्षये मोक्षो जीवास्यास्परम् महः ।। २.२ इत्थल कुविवादेन धर्मध्वंसो यतो भवेत सत्त्वशानधया ये तु बादं कुर्यति जातु न ॥ १६३ ॥ सत्यज्ञानं विधावे मो मानवानां भवत्यरं। तरक्षये झानसंसिद्धिविनिर्धूमप्रदीपवत् P ६४ ॥ सा कमायौयनं प्राप्ता ललितांगी ललद्गतिः । लोलगक् पीवरस्थूलनितम्बोद्भारमालिनी ॥ १६५ ॥ सुरम्यो विषयोऽथास्ति और स्त्री पनेका कारण कर्म होगा तो स्त्री होगी इसलिये यह बात निर्विवाद रूपसे सिद्ध हो जाती है कि जब तक इस जीवके साथ कर्मका संबंध रहता है तब तक.यह अनेक प्रकारकी योनियोंमें | समता फिरता है किन्तु जिस समय उस कर्मके संबन्धका सर्वथा नाश हो जाता है उस समय जीवको मोक्षकी प्राप्ति होजाती है जो मोचा एक उत्कृष्ट तेज कहा जाता है ॥ १६१-१९२ ॥ बस IN विशेष कुविवादके करनेकी कोई आवश्यता नहीं क्योंकि खोटे विवादसे वास्तविक धर्सका लाश हो जाता है। जो पुरुष तत्त्व ज्ञानी हैं वे कभी भी किसी प्रकारका विबाद नहीं करते ॥ १९३॥ जिस प्रकार वाके रहते दीपकका प्रकाश भदमेला रहता है किन्तु जिस समय धूश्रा नष्ट हो जाता है उस समय दीपकका प्रकाश उज्ज्वल हो जाता है उसी प्रकार विवाद करनेसे मनुष्योंमें अज्ञानकी वृद्धि होती है और विवाद न करनेसे ज्ञानकी भले प्रकार सिद्धि होती है ॥ १६४ ॥ मृगायणका जीव कन्या हिरणवती क्रमसे युवति होगई। उसका समस्त अङ्ग सुडौल मनोहर था। वलीला पूर्वक वह गमन करने वाली थी। चंचल नेत्रोंकी धारक थी एवं स्थूल स्तन और नितंबोंके । भारसे शोभायमान थी ॥ १६५ ॥ इसी पृथ्वीपर एक सुरभ्य नामका देश है जो कि यथार्थ नामका धारक हैं । सुरम्य देशके अन्दर एक पोदन नामका नगर है जो कि अपनी सुन्दरतासे राजराजपुर-कुबेरपुरी अलकाकी शोभा धारण करता है ॥ १६५ ॥ पोदन पुरका स्वामी राजा पूर्ण चन्द्र था जो कि यशस्वी था । पूर्ण JAYANAYANAYAYANAYANAYANAYA ३
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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