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________________ MAYEKAREET HI बबस्तस्य श्रुत्वा सदनमापयो । गौत्षा सुतां समायाति सावदायकवाऽभवत् ॥ ६॥ तत्रत्यो बज्रसेनाख्यः जगत्रकी निशम्य ता । रूपसीमानमायात आइतु पृष्ठतो पलो॥६॥ ऐशवणपुराभ्यणे रणव नियाम्य सः । ऐरावणोऽथ तं नित्या परिणीय सख ला स्थितः ॥ ७० ॥ विधीक्षे लज्जितो बनसेनाव्यस्तप आकरोत् । जाते वर्षसहस्र स स्तवकलं छमाययो । ७२ ॥ एकदा तं मुनि दृष्ट्वाल । विद्याधर नगर अलकपुरमें ही विद्याधरोंका चक्रवर्ती एक बसेन नामका भी राजा रहता था कन्या प्रियंगुश्रीको परम रूपवती देख वह उसपर आसक्त होगया एवं राजा महाकच्छ जैसे ही उसे राजा ऐरावणके साथ विवाह करनेके लिये ले जारहा था वैसे ही वह कन्या प्रियंगुश्रीको हरण करने के लिये राजा महा कच्छके पीछा दिया ॥६८-६६ ॥ राजा ऐरावणकी राजधानोके पास पहुंचते २ विद्याधर वजूसेन और महाकच्छकी मुठ भेंट होगई। दोनों सेनाओंमें रणवाजा वजने लगा और युद्ध होने लगा। रण वाजोंका शब्द राजा ऐरावणके कानतक भी पहुंच गया। वह शीघ्र ही रण क्षेत्रमें भा पहुंचा। विद्याधर वनसेनको जीतकर कन्या प्रियं1 गुभोको ब्याह लिया और विषय जनित सुखोंको भोगता हुआ सानन्द रहने लगा। अपमान बड़ा दुख दायो होता है। राजा ऐरावणसे जब विद्याधर वजूसेन हार गया तो उसे बड़ी लज्जा आई । लजित हो समस्त राज्यका उसने परित्याग कर दिया एवं दिगम्बरी दीक्षा धारण कर वे घोर तप तपने लगे। तप करते २ जब पूरे हजार वर्ष बीत गये तब बिहार करते २ Ke वे मुनिराज एक दिन राजा ऐरावणको राजधानी स्तवकग्लुछ नगरकी और आये और नगरके बाहिर किसी बगीचे में आकर विराज गये ॥ ७० । ७१ ॥ किसी दिन वे मुनिराज पूर्ण ध्यानमें लीन थे कि जहा तहां बनमें क्रीडा करने वाले राजा ऐरावणके पुत्रोंने उन्हें देखा और वे मूर्ख मुनिमुद्राका कुछ | भी महत्त्व न समझ हंसी उड़ाते हुये आपसमें इसप्रकार कहने लगे
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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