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________________ ल YYAYAYAY でわでわやか भूपाः सकौतुकाः । तन्मोहेनैव सत्यकथाद्याश्चिहार्पिता इव ॥ ६८ ॥ अन्यदा सर्वमपालसमे कन्याविराजिते । समागमन्महारौद्रः कापाली भस्मभूपितः ॥ ६६ ॥ पाष्पीकृतकपालः सम्नग्नरूपी जटाधरः । अस्थिसंघातमालालंकृतप्रोध कृपातिगः ॥ १०० ॥ नानाकौटिल्य विद्याभिर्मत्स्ययन कोपतो नरान् । शंखचकरहः कालः स्थितः पद्मासने इतरे ॥ १०१ ॥ अत्रांतरे नभोमारों गच्छन् देवः स्वकां तथा । नदीश्वरमहाद्वीपयालां कृत्वा सभोपारं ॥ १०२ ॥ आगतस्तर्हि रंभा तं मणिचूलसुराधिपं । रराण मधुराला पैरदः किं वर्तते विभा ! ।। १०३ ॥ चकार्णेति चकोराक्षि ! प्रारूध ऽस्मिन् स्वयंवरे । मंदारमालिकाभावाद्वर किंचिन्न मन्यते ॥ १०४ ॥ श्रुत्वैतत्कीराजकुमार कन्या परम सुन्दरीके मोहसे लालायित हो वरावर छह मासतक वहीं पड़े रहे। वे कन्या परम सुन्दरी पर इतने व्यामुग्ध थे कि अपने खाने पीनेकी भी उन्होंने पर्वाह न की थी इसलिये वे ऐसे जान पड़ते थे मानों किसी चतुर चित्रकारने उन्हें चित्रपट में अंकित कर दिया है ॥ ६८ ॥ एक दिनकी बात है कि समस्त राजा और कन्यासे मंडित सभा मंडप में एक कापाली आया जो कि महा भयङ्कर था। अंगमें भवति रमाये था। हाथमें कपाल था । नग्न दिगम्बर था । जटा धारी था। गलेमें हड्डियोंकी माला पहिने था । दया रहित था । अपनी कुटिल विद्याओंसे समस्त सभा के मनुष्यों को डरानेवाला था । शङ्ख और चक्रोंको धारण किये था इसलिये सान्तात् कालसरीखा जान पडता था तथा सभामण्डपमें आकर वह पालती मार कर वठ गया ।। ६६-१०१ ॥ उसी समय मणिचूल नामका देवोंका स्वामी नन्दीश्वर महा द्वीपकी यात्रा कर आकाशमै अपनीसाथ जा रहा था जिस समय वह स्वयम्बर मंडपकी भूमिपर आया उसकी स्त्रीने मधुर वचनों में यह पूछा, प्राणनाथ ! नोचे यह क्या दृश्य दीख रहा है ? उत्तरमें मणिचूलने कहाप्रिये ! कन्या परम सुन्दरीके निमित्त यह स्वयम्बर रचा गया है उसकी यह प्रतिज्ञा है कि जिस महानुभाव के गले में मंदार पुष्पों की माला होगी उसे ही मैं वरूंगी अन्यको नहीं परन्तु पुष्पों की माला किसी के गले में है नहीं इसलिये वह कन्या किसीको वर स्वीकार करना नहीं चाहती । 春に看看 पत्रप
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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