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पादाब्जे वाया: सिन्धुरा
गाध : "
भYANAVINAYANAYA
हिरण्येऽनिलः सोमो गूढसत्वादकोपतः। प्रतापातिभूर्भानुः संतत्यमोजिनीषु यः॥६॥ (युग्म) खत्रयत्वेकसाहस्यसंख्या मुकुटपद्धकाः। सेवन्ते पत्यह तस्य पादाज चञ्चरीकषत् ॥६९ ॥ तापत्संख्या मृगाक्ष्योऽस्य सुखयन्तीव रभिकाः । नवकोरितुरङ्गाणा माला माति मनोहरा ।। ६२ ।। अपंचविचतुःसंख्या: सिन्धुरा दानवर्षिणः। मदोद्धराः सिता भौति नभोलिह यो म्नताः ।।१३।। शंखडगदाचापखड्चकसुशक्तिकाः। प्रत्येयं साप्त रखानि तस्य सन्ति च गागध : ॥ ६४ ॥ प्रामास्तस्याठचत्वा रिशत्कोटि प्रमिता मताः। गोकुलं सार्थकोट्य के वर्तते भूतयोऽपराः।।६५ ।। भुजन राज्य स्थितो धर्मरलिना मूशलं गवा। माला धर्म नामका बलभद्र था। स्वयं को तीन खण्डका स्वामी अयं चक्री था। भूमिगोचरी विद्याधर राजाओंसे सेवित था एवं इन्द्र जिसप्रकार स्वर्गपुरीकी रक्षा करता है उसप्रकार वह द्वारवतीपुरी की रक्षा करता था ॥५६॥ तथा वह नारायण स्वयंभू शत्रुरूपी वनकेलिये दावानल था। छिपे हुए पराक्रम का धारक और क्रोध रहित शांत होनेके कारण चंद्रमा सरीखा था। अपने पराक्रमसे समस्त पृथ्वी तलको वश करने वाला था और प्रजारूपी कमलिनियोंको प्रसन्न करनेवाला सूर्य था—उसके राज्यमें सारी प्रजा प्रसन्न और सुखी थी॥ ६ ॥जिसप्रकार भ्रमर कमलकी सेवा करते हैं उसी प्रकार सोलह हजार मुकुट वद्ध राजा उस नारायण स्वयंभके चरण कमलोंके सेवक थे ॥ ६१ ॥ जिसप्रकार देवांगना देवॉको सुखी बनाती हैं उसीप्रकार सोलह हजार मग लोचनी रानियां नारायण स्वयंभूकी सेवा करतीं और उसे सुखी बनाती थीं। उसके नौ करोड़ घोड़े थे जो कि तेज पानीके महामनोहर थे । ब्यालीस लाख हाथी थे जिनके कि गंडस्थलोंसे मद चता था। मदसे | उत्कट थे और इतने ऊंचे थे मानो आकाशको स्पर्श करते थे ॥ ६२ । ६३ ॥
उस राजा स्वयंभूके शंख, दण्ड, गदा, धनुष, खड्ग, चक्र और शक्ति ये सात रत्न थे। अड़ता. लीस करोड़ संख्याप्रमाण उसके ग्राम थे । डेढ़ करोड़ गायें थीं और अनेक प्रकारकी विपुल विभूति थी ॥६४-६५॥ मूसल, गदा, माला और शीर नामक शस्त्रोंके धारक, अत्यंत सामर्थ्यवान अपने बड़े ic भाई बलभद्रके साथ वह स्वयंभू नामका नारायण अपने राज्यका सुखपूर्वक भोग करता था ।।६६॥
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