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PARSEK
चौथा सर्ग |
युगादिभवमादीश शर्मणे शिवदं शिवं | वंदेहं कोटिराजाभं सोम्यत्वाज्जगतां पतिं || १|| अर्थकदा नराधीशो सैन्ययुक्तो वन गतः हिमंत रममाणः सन् कौतुकं दृष्टवानिति || २ || हिमानीं च महाशुभ्रां चंद्रकुदसमप्रभो । जलाशये दर्शासौ चित्रा सौख्याकर प्रदां ||
जो भगवान आदिनाथ युगको आदिमें होनेवाले हैं । मोक्ष कल्याणको प्रदान करनेवाले हैं । स्वयं कल्याण स्वरूप हैं । अत्यंत सौम्य होनेसे करोड़ों चन्द्रमाको कांतिको धारण करने वाले हैं और समस्त जगतके स्वामी हैं उन भगवान आदिनाथको मैं अपने कल्याणके निमित्त भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ ॥ १ ॥ एक दिनकी बात है कि शरद ऋतु के अन्दर वे नरनाथ भगवान विमलनाथ अपनी सेना से वेष्टित हो एक विशाल वनमें प्रवेश कर गये और वहां अनेक प्रकारकी क्रीड़ाये करने लगे । सामने एक तालाव में उन्हें हिमानी -- बरफका समूह दीख पड़ा जो कि देखते ही अत्यंत कौतूहलका करने वाला था सफेद था चंद्रमा और कुन्दपुष्पकी प्रभाका धारक था और चित्तको अत्यंत आनंद प्रदान करने वाला था ॥ २ ॥ ३ ॥ वे उसे बड़ी आनन्दमयी दृष्टिसे देख रहे थे कि वह देखते देखते पिघल गया बस उधर तो वह पिघला और इधर भगवान विमलनाथके चितमें एकदम ससार शरीर भोगोंसे बैराग्य हो गया वे अपने मनमें इसप्रकार वैराग्य भावना भाने लगे कि
यस्य जयज
जिसप्रकार यह वरफका समूह देखते देखते पिघल कर नष्ट हो गया है उसी प्रकार संसार की जितनी भी चीजें है अपना अपना काल पाकर सभी नष्ट होने वाली हैं यह जो मेरे साथ विशाल सेना है इससे मेरा कोई प्रयोजन नहीं । अनेक शुभलक्षणोंका धारक यह शरीर भी मेरा हितकारी
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