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हपकार
सोमबत्तरां । रमयतिस्म देवौधा नानास्पैर्मनोहरः ॥ १२३ ॥ वासुपज्येशसंताने विश सागर संमिते । प्रांतपल्पोपामे धर्मध्वंसे दुगत जीवितः ॥ १२४ ।। तस्यायुः षष्टिलक्षणां वर्षाणां संबभूव च (६०००००० )ष्टिचापतनत्सेधस्तप्तजांबुनद प्रमः ।। १२५ ॥ खपंचके दियकाब्दकौमार धिरतो महान् । प्राप्तराज्याभिषेक ऽभूत्प्रतापानांतविष्टपः ॥ १२६ ॥ पझा सहचरी जाता सहोल्पना सरस्वती। प्रतापधीरवोरत्वं तस्याम त्पुण्यतोऽखिल ॥ १२॥ सत्यादयो गुणा यस्य चैधतांभोधिरंगवत् । योगिनामपि संश्लाया वीर्तिकाष्टांत गता॥ १२८॥ ये नमंति सुराः सर्वे नरेवाः खेचरास्तथा। धरैशा हरय स्तस्य ध्रुव का वर्णना परा ॥ १२६ ॥ शिल्लक्षप्रमाणानां समाना राज्यकालता । तस्याभूत् काश्यपीनाथैः पूज्यपादस्य सद्धियः ।। १३० ॥ नानाभोगान् भुनक्तिस्म घट्ऋतुसंभवान् परान !
जब बीत चुका था एवं एक पल्योपम काल पर्यन्त धर्मका ध्वंस हो चुका था। उस समय भगवान X विमलनाथका जन्म हुआ था। इन भगवान विमलनाथकी आयु साठलाख वर्ष प्रमाण थी। साठि
धनुष प्रमाण शरीरकी उंचाई थी एवं उस शरीरकी प्रभा सोनेकी प्रभा जैसी थी ॥ १२४ । १२५ ॥ भगवान विमलनाथके कुमार कालके १५००००० पन्द्रह लाख वर्ष जब वीत गये उस समय उनका ! राज्याभिषेक हुआ एवं अपने अद्वितीय प्रतापसे उन्होंने समस्त जगतको वश कर डाला ॥ १२६ ॥ भगवान विमलनाथकी पटरानीका नाम पद्मा था एवं वह साथ उत्पन्न होने वाली सरस्वती देवी सरीखी जान पड़ती थी। भगवान विमलनाथको तीब्र पुण्यके उदयसे प्रतापसे एवं धीरवीरता सभी बाते प्राप्त थीं ॥ १२७ ॥ जिस प्रकार समुद्रकी तरंगे प्रति क्षण बढ़ती चली जाती हैं उसी प्रकार भगवान जिनेंद्र के अन्दर सप्त आदि गुण निरन्तर बढ़ते चले जाते थे। संसारकी समस्त बासनाओं से सर्वथा बहिर्भत बड़े बड़े योगी भी उनकी कीर्तिकी सराहना और प्रशंसा करते थे एवं समस्त दिशाओं में यह व्याप्त थी ॥ १२८ । विशेष क्या जिस भगवान विमलनायको बड़े बड़े देव राजा विद्याधर चक्रवर्ती और अर्ध चक्री भी मस्तक झुकाकर नमरकार करते हैं उनके विषय में जो भी वहन किया जाय थोड़ा है ॥ १२६ । १३० ॥ अनेक बड़े बड़े राजा जिनके चरण कमलोंकी सानन्द पूजा
प.KI.यसकर
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