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७9 ॥ क्रमेण पूर्णमासतेिऽजीजनन्नन्दन ं सुखं । तेजः पुंजं नभोरत्न' कुलाकाश वा ॥ ७८ ॥ मात्रमासे सिते पक्षे चतुर्थ्यां गर्मजिम | त्रिबोधं त्रिजगन्नाथं जयश्यामा सुलक्षणं ॥ ७९ ॥ ( युग्मं ) स्वर्गे घंटारवो जातः सिंहनादश्च ज्योतिषि | व्यंतरेष्वारवो मे शंखशब्दो हि भावने ॥ ८० ॥ लक्षणलक्षितं जन्म विमलस्य सुरेश्वरः । यदा तदा सुराः सर्वेऽभिषेकार्थ समुत्सुकाः ॥ ८१ ॥ शा याधीश गर्ज चैरावताभित्रं लक्षक योजनप्राग्यं शतास्यं निर्ममे मुदा ॥ ८२ ॥ प्रत्यास्यं रहना अष्टौ प्रतितं सरोवरं । सरो वर' प्रति प्रोक्ता नलिन्या पंचविंशतिः ॥ ८३ ॥ प्रत्येकन लिनोवाद पंकजद्विशती मता । पंचविंशतिसंमिश्रा तत्प्रत्नं वल ॥ ८४ ॥
लोकके स्वामी थे और सुंदर लक्षणोंसे शोभायमान थे || ७७ ७८ ॥ जिस समय भगवान जिनेंद्र उत्पन्न हुए उस समय स्वर्ग में घंटानाद होने लगा । ज्योतिषियों के घरोंमें सिंहनाद होने लगा । ajain घरोंमें भेरी बजने लगी और भवनवासियों के घरों में शंखनाद होने लगा ॥ ७६ ॥ जिस समय घंटानाद आदि चिह्नोंसे देवोंके दंडोंको भगवान विमलनाथके जन्मका पता लगा उन्हें बड़ा आनन्द हुआ एवं उनके लिये उत्सुक होगये ॥ ८० ॥ उस समय कुबेरने अपने स्वामी इन्द्रकी आज्ञा से ऐरावत नामके हाथीका निर्माण किया जो हाथी एक लाख योजन का चौड़ा और सौ मुखोंसे शोभायमान रहता है ॥ ८१ ॥ हाथीके प्रत्येक मुखसे आठ आठ दांत रचे गये प्रत्येक दांत पर एक एक सरोवर रचा गया। हर एक सरोवर में पच्चीस पच्चीस कमलिनी ( कमलों को बेलें ) प्रत्येक कमलिनीमें दो सौ पच्चीस पच्चीस कमल और प्रत्येक कमलके सौ सौ दल (पत्ते) रचे गये एवं प्रत्येक फलपर एक एक देवांगना सानंद नत्य करती चली जाती थीं ऐसी रचना की गई। तथा ऐरावत हाथी के कुक्षिभागमें तेतीस सभाओंकी रचना की गई। जो कि महा मनोहर थी और हर एकमें तेतीस तेतीस करोड़ देव निवास करते थे । इस प्रकार अद्भुत रचना धारक ऐरावत हाथीपर प्रथम स्वर्ग सौधर्म इंद्र बड़े समारोहसे सवार हो लिया ॥८२॥८४॥ वह धर्मात्मा सौधर्म स्वर्गका इन्द्र अपनी प्यारी इंद्राणी और देवोंके साथ भक्ति भावसे स्वर्गसे कं
तपनयनेप
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