SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REERPRI Mपकमल सत्यता ध्रुवं ॥ १७॥ को मित्रं यो हित शास्ति कोऽकर्णो मरणं च किं । सारंगश्रवणाभावो मर्मता जन्मतापिनी ॥ ६८ ॥ को ध्येयो जगदानंदी जिद्र पो वृषभः प्रभुः । कि प्रधान दद्यादान यथाशक्तितपस्विता ।। ६६ ॥ एवमादिमहाप्रश्नमाला त्या पुनर्जगो। निगूढार्थ पद त्वं गोशिगंगा ॥ बारश्य त्वं फल मातः कि कायस्थाज्ञतां खलु। मामकीनं लसद्भधानं केवलझानसदगमं ॥ ७३॥( कियागुप्तमवः प्रश्नोत्तरजातिश्च ) सरातिसदोद्गारसहकसमप्रभः ! उग्रो भाति दुराचाराच तिमिरकतमोरिभः ।। ७२ ॥ | एवं चैतन्य स्वरूप भगवान ऋषभदेव । प्रश्न--संसारमें मुख्य चीज क्या है ? उत्तर- दया दान | और यथा शक्ति तपस्विता ।। ६१-६८ ॥ इत्यादि अनेक महागूढ़ प्रश्नोत्तर हो चुकते थे तब कोई कोई देवांगना मातासे यह कहती थीं कि हे माता ! तुम भगवान जिनेन्द्रकी माता हो और इस समय भगवान जिनेन्द्र आपके गर्भ में विद्यमान हैं इसलिये आप हमारी पहेलीका अर्थ बतलाइये। एकने कहा : हे माता। शरीरका फल क्या है और शरीरकी अज्ञानता बतलाने वाला कौन है ? आप ke कहें । उत्तर... केवल ज्ञानको उत्पन्न करानेवाला मेरा सुंदर ध्यान । अर्थात् उत्तम ध्यान करना ही शरीर धारण करने का फल है और उसीसे शरीरकी जड़ता जानी जाती है । ( इस श्लोकमें 'कथम कहैं' यह क्रिया गुप्त है और यह प्रश्न और उत्तर गर्भित है ) हे माता इस दुस्तर संसारसे रक्षा| करने वाला कौन है ? उत्तर-समस्त वैरियोंका सेनाके सहने में जो चक्रवर्तीके समान शोभायमान हैं। बलवान हैं। निंदित आचार रूपी अंधकारके नाश करने के लिये जो सूर्यके समान हैं (यह चौकोंण बंध श्लोक है ) जो सम चक्रवर्ती और असम-दरिद्रो दोनोंमें समान भावके रखनेवाले है | चन्द्रमाके समान मुख वाले हैं। जिनका ज्ञान चैयन्य रूपकी प्रशंसा करनेवाला है एवं न जो ira अनादरको मानने वाले हैं और न आदरकी पर्वा करने वाले हैं वे ही इस संसारसे प्राणियोंका। उद्धार कर सकते हैं अन्य नहीं। यह एक पाद कम यमकालङ्कार हैं। अर्थात् तीन पादोंमें यमक घडATRAPATAYERSyst
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy