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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ७५ हुआ ताप ) पापरूप सूर्य से उत्पन्न होने वाले ताप को ( अभाव ) अस्त या नाको (प्राय) प्राप्त वह ( चारित्रवृक्ष ) चारित्र रूपी वृक्ष ( नः ) हमारे ( भव ) संसार रूप ( विभव हान्यै ) नश्वर विभूति या पुण्याधीन वैभव के नाश के लिये (अस्तु) हो ।।४ - ५ ।। - भावार्थ - इस श्लोक में चारित्ररूपी वृक्ष के परिवार का सुन्दर चित्रण - व्रत को जिस वृक्ष की जड़ कहा गया है संयम को स्कंध बन्ध कहा हैं । यम नियमरूपी पानी से सींचा जाता है शीलरूपी शाखा समिति रूपी कलिकाओं और गुप्ति रूप कोपल से युक्त हैं। गुण रूपी पुष्पों की जिसमें सुगंधी हैं, तप पत्ते हैं, मोक्ष फल है, शुभोपयोगी पथिक / मोक्षमार्गी को निर्विघ्न भक्ति में प्रेरित की थकान को दूर करता है, पापरूपी सूर्य का अस्त करने में एकमात्र हेतु ऐसा चारित्रवृक्ष संसार के अन्त में हेतु हो । जिस प्रकार वृक्ष में जड़, स्कंध, शाखा, पत्ते, फूल-फल आदि होते हैं, जीवों को उसका लाभ मिलता है, उसी प्रकार चारित्र को यहाँ वृक्ष की उपमा दी हैं । और चारित्र वृक्ष के परिवार को समझाया है । चारित्रं सर्व जिनैश्चरितं प्रोक्तं च सर्व शिष्येभ्यः । T प्रणमामि पञ्च भेदं पञ्चम चारित्र लाभाय । । ६ । । - · - अन्वयार्थ - ( सर्वजिनैः ) सब तीर्थकरों के द्वारा ( चारित्रं ) जिस चारित्र का स्वयं ( चरितं ) आचरण किया गया । (च) तथा ( सर्वशिष्येभ्यः ) समस्त शिष्यों के लिये ( प्रोक्तं ) जिस चारित्र का उपदेश दिया गया उस ( पंचभेदं चारित्र ) सामायिक, छेदोपस्थापना आदि पाँच भेद युक्त चारित्र को ( पंचम चारित्र लाभाय ) पाँचवें यथाख्यातचारित्र की प्राप्ति के लिये ( प्रणमामि ) मैं नमस्कार करता हूँ । - धर्मः सर्व सुखाकरो हित करो, धर्म बुधाश्चिन्वते, W धर्मेणैव समाप्यते शिव सुखं धर्माय तस्मै नमः | धर्मान् ~ नास्त्य - परः सुहृद् भव भृतां धर्मस्य मूलं दया, धर्मे चित्त- महं दधे प्रतिदिनं हे धर्म ! मां पालय ।। ७ ।। अन्वयार्थ ---( सर्वसुख आकरः ) सब सुखों की खानि ( हितकर ) हित को करने वाला ( धर्मः ) धर्म हैं। ( बुधा: ) बुद्धिमान लोग (धर्म) धर्म को ( चिन्वते ) संचय करते हैं । धर्मेण ) धर्म के द्वारा ( एव ) ही
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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