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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका वर्तमान ( सर्वान् पर्यायान् ) सम्पूर्ण पर्यायों को ( सदा ) हमेशा ( सर्वदा ) सर्वकाल में ( प्रतिक्षणं ) प्रति समय में ( युगपत्) एकसाथ ( जानीते ) जानते हैं ( अत: ) इसलिये ( सर्वज्ञः ) वे सर्वज्ञ ( इति ) इस प्रकार ( उच्यते ) कहे जाते हैं ( तस्मै ) उन ( सर्वज्ञाय ) सर्वज्ञ ( जिनेश्वराय ) जिनेम्वर ( महते वीराग्य ) पूज्य महावीर भगवान के लिये ( नम: ) नमस्कार हो ! भावार्थ—त्रिकालवर्ती चेतन-अचेतन द्रव्य व उनकी सब पर्यायों को जो युगपत् जानते हैं उन महापूज्य वीर जिनके लिये नमस्कार है। वीरः सर्व-सुरासुरेन्द्र-महितो वोरं बुधाः संश्रिता, वीरेणाभिहतः स्व-कर्म-निचयो वीराय भक्त्या नमः । वीरात् तीर्थ-मिदं प्रवृत्त-मतुलं वीरस्य घोरं तपो, वीरे श्री-द्युति- कांति-कीर्ति-धृतयो, हे वीर ! भद्रं त्वयि ।।२।। अन्वयार्थ -( वीर: ) वीर भगवान् ( सर्व सुर असुरेन्द्र महित: ) सभी सुर/देव और असुर तथा इन्द्रों से पूजित हैं ( वीरं ) वीर प्रभु को ( बुधाः ) ज्ञानी जन ( संश्रिताः ) आश्रय करते हैं ( स्वकर्मनिचयः ) अपने कर्म समूह को ( वीरेण ) जिन वीर भगवान् के द्वारा ( अभिहत: ) नष्ट कर दिया गया है ( वीराय ) उन वीर प्रभु के लिये ( भक्त्या ) भक्ति से ( नमः ) नमस्कार हो । ( वीरात् ) वीर प्रभु से ही ( इदम् ) यह { अतुलं ) अनुपम, अतुल ( तीर्थ ) तीर्थ ( प्रवृत्तं ) प्रवृत्त हुआ है ( वीरस्य) वीर भगवान् का ( तपो ) तप ( घोरं/वीरं ) उत्कृष्ट है ( वीरे ) वीर भगवान् में (श्री) अन्तरंग अनंत चतुष्टय और बाह्य समवशरणादि लक्ष्मी ( धुति कान्ति कीर्तिधृतयः ) तेज, कान्ति, यश और धैर्यता गुण विद्यमान हैं ( हे वीर! ) हे वीर भगवान् ( त्वयि ) आप में ( भद्रं ) कल्याण निहित है अर्थात् हे वीर भगवान् ! आप ही कल्याणकारी हैं। इस श्लोक में कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बंध, अधिकरण और संबोधन आठों विभक्तियों का प्रयोग करते हुए वीर भगवान् की सुन्दर अलंकार पूर्ण स्तुति की गई है। ये वीर-पादौ प्रणमन्ति नित्यम्, ध्यान-स्थिताः संयम-योग-युक्ताः । ते वीत-शोका हि भवन्ति लोके, संसार-दुर्ग विषमं तरन्ति ।।३।।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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