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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्यवार्थ-( भंते ) हे भगवन् ! ( उच्चार ) रट्टी ( पस्सवण ) पेशान ( खेल ) खंखार ( सिंहाण ) नासिका मल ( विडिय) विकृति अर्थात् पसीना आदि ( पइट्ठावणियाए ) क्षेपण करने में ( जो कोई ) जो भी कोई ( पाणा वा भूदा वा जीवा वा सत्ता वा ) विकलेन्द्रिय या वनस्पतिकायिक जीव या पञ्चेन्द्रिय जीव या पृथ्वी, जल, अग्नि व वायुकायिक जीवों का ( संघट्टिदा ) संघट्टन किया हो ( वा ) या ( संघादिदा ) संघातन किया हो ( वा ) अथवा ( उद्दाविदा ) उत्तापन किया हो ( वा ) अथवा ( परिदाविदा ) परितापन किया हो ( एत्य ) इनमें ( मे ) मेरे द्वारा ( देवसिओ-राइओ) दैवसिक-रात्रिक क्रियाओं में ( जो कोई ) जो भी कोई ( अइचारो ) अतिचार ( अणाचारो ) अनाचार हुए हों ( तस्स ) तत्संबंधी ( मे दुक्कडं ) मेरे दुष्कृत ( मिच्छा ) मिथ्या होवें, निष्फल होवें इसलिये ( पडिक्कमामि ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।
भावार्थ—उच्चार-प्रस्रवण आदि क्रियाओं में पाण-भूत-जीव और सत्व को मेरे द्वारा पीड़ा पहुँची हो तो मेरे दुष्कृत मिथ्या हों।
एषणा [ भोजन दोषों की आलोचना पडिक्कमामि भंते ! अणेस-णाए, पाण-भोयणाए, पणय-भोयणाए, बीय भोयणाए, हरिय-भोयणाए, आहा-कम्मेण वा, पच्छा-कम्मेण वा, पुरा- कम्मेण वा, उठ्ठियडेण वा, णिदिट्ठयडेण वा, दय-संसिट्ठयडेण वा, रस-संसिठ्ठयडेण वा, परिसादणियाए, पइट्ठावणियाए, उद्देसियाए, णिइसियाए, कोदयडे, मिस्से, जादे, ठविदे, रइदे, अणसिद्धे, बलिपाहुडदे, पाहुडदे, घट्टिदे, मुच्छिदे, अइमत्त- भोयणाए इत्थ मे जो कोई गोयरिस्स अइचारो अणाचारो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।
अन्वयार्थ ( भंते !) हे भगवन् ! ( अणेसणाए ) भोजन के अयोग्य ( पाणभोयणाए ) पान के भोजन से ( पणयभोयणाए ) पणय भोजन से ( बीयभोयणाए ) बीज भोजन करने से ( हरियभोयणाए ) हरित भोजन करने से ( आहाकम्मेण वा ) अध:कर्म से या ( पच्छाकम्मेण वा ) पच्छाकर्म से बा ( पुराकम्मेण वा ) पुराकर्म से या ( उद्दिट्टयडेण वा ) उद्दिष्ट कृत से या ( णिट्टियडेण वा ) निर्दिष्ट कृत या ( दयसंसिट्टयडेण वा ) दया से