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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
विंशतिरथ त्रिसहिता, सहस्र गुणिता च सप्तनवतिः प्रोक्ता । चतुरधिकाशीतिरतः, पञ्चक- शून्येन विनिहतान्यनघानि ||६||
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अन्वयार्थ - ( यावन्ति सन्ति ) ज्योतिषी देवों के जितने विमान हैं, उतने ही उनके विमानों में अकृत्रिम चैत्यालय हैं, और वे सब चैत्यालय ( कान्तज्योतिर्लोक- अधिदेवता-अभिनुतानि ) ज्योतिलोक के सुन्दर अधिदेवताओं के द्वारा नमस्कार को, स्तुति को प्राप्त हैं
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( अनेक विकल्पे - कल्पे ) अनेक भेद वाले कल्पों कल्पवासी देवों के सोलह स्वर्गों में ( अहमिन्द्र कल्पे ) अहमिन्द्रों की कल्पना वालों में व ( अनल्पे ) विस्तार को प्राप्त ( कल्पातीते ) कल्पातीत देवों-नौ ग्रैवेयकों, नौ अनुदिशों और पाँच अनुत्तर विमानों में ( अनघानि ) पापों से मुक्त जिनालयों की संख्या ( चतुरधिकाशीतिः अतः पंचकशून्येन च सप्तनवति सहस्त्र गुणिता विनिहतानि अथ त्रिसहिता विंशतिः प्रोक्ता ) पाँच शून्य से गुणा किये गये चौरासी अर्थात् ८४ लाख एक हजार से गुणा किये गये संतानवे अर्थात् ९७ हजार और तीन सहित बीस अर्थात् २३ अर्थात् कल्पवासी और कल्पातीत देवों के अकृत्रिम चैत्यालयों की संख्या ८४ लाख ९७ हजार २३ है ।
भावार्थ- ज्योतिषी देवों के असंख्यात विमानों में असंख्यात अकृत्रिम चैत्यालय हैं तथा वे सब चैत्यालय ज्योतिर्लोक के सुन्दर देवताओं के द्वारा प्रतिदिन पूजे जाते हैं, नमस्कार किये जाते हैं । अर्थात् ज्योतिषी देव प्रतिदिन चैत्यालयों की आराधना करते हैं ।
इन्द्र- सामानिक आदि अनेक भेदों वाले कल्पवासी देवों के सोलहसौधर्म आदि स्वर्गों में तथा कल्पातीत देवों के नौ ग्रैवेयकों, नौ अनुदिशों, पाँच अनुत्तर विमानों में पापनाशक कुल ८४ लाख ९७ हजार २३ अकृत्रिम, मनोहर वीतराग जिनबिम्बों से शोभायमान जिनालय हैं । उनमें चौरासी लाख छ्यानवे हजार सात सौ चैत्यालय कल्पवासियों के हैं तथा मात्र तीन सौ तेईस चैत्यालय कल्पातीत देवों के विमानों में हैं। ये सभी जिनालय भव्यजीवों के पापों का क्षय करने वाले हैं ।
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