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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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का स्मरण किया हैं । वे मेरी भक्ति के आधार भयमुक्त जिनेन्द्रदेव और शान्तरस में लीन मुनिवृन्द मुझे शीघ्र ही दोषरहित, विशुद्ध, बाधारहित सुख से सहित ऐसी उत्तम गति--मोक्ष गति को प्रदान करें।
क्षेपक श्लोकानि
कैलाशाद्री मुनीन्द्रः पुरुरपदुरितो मुक्तिमाप प्रणूतः । चंपायां वासुपूज्यस्त्रिदशपतिनुतो नेभिरप्यूर्जयंते । । १ । १ पावायां वर्धमानस्त्रिभुवनगुरवो विंशतिस्तीर्थनाथाः । सम्मेदाग्रे प्रजग्मुर्ददतु विनमतां निवृत्तिं नो जिनेन्द्राः || २ || अन्वयार्थ -- ( अपदुरित: ) पापों से मुक्त ( प्रणूतः ) नमस्कार को प्राप्त ( मुनीन्द्रः पुरु) मुनियों के स्वामी पुरुदेव ऋषभनाथ स्वामी ( कैलाशाद्रौ कैलाश पर्वत पर ( मुक्तिम् आप ) मुक्ति को पधारे। (त्रिदशपतिनुतः वासुपूज्य चंपायां ) इन्द्रों के द्वारा नमस्कृत वासुपूज्य भगवान् चम्पापुर से मोक्ष पधारे ( नेमिः अपि ऊर्जयन्ते ) श्री नेमिनाथ भगवान् ऊर्जयन्तगिरनार पर्वत से मोक्ष पधारे ( पावायां वर्धमानः ) श्री वर्धमान स्वामी पावापुरी से मुक्त हुए तथा ( त्रिभुवनगुरवः विंशतिः तीर्थनाथा: ) तीन लोकों के गुरु शेष २० तीर्थंकर ( सम्मेदाये प्रजग्मुः ) सम्मेदचल - सम्मेदशिखर से मुक्ति को प्राप्त हुए ( जिनेन्द्राः ) ये सभी २४ तीर्थंकर भगवान् ( विनमतां नः ) नमस्कार करने वाले हम सबको ( निवृत्तिं ददतु ) निर्वाण पद देवें ।
भावार्थ -- युग के आदितीर्थंकर जो पाँच पापों से, अष्ट कर्मों से रहित हैं, मुनियों, गणधरों के भी स्वामी हैं, उनके वन्दनीय हैं, श्री ऋषभदेव कैलाश पर्वत से मुक्त हुए। सौ इन्द्रों से वन्दनीय प्रथम बालयति श्री वासुपूज्य तीर्थकर चम्पापुर पुर - मन्दारगिरि से निर्वाण को प्राप्त हुए । अरिष्ट नेमिप्रभु गिरनार क्षेत्र से मोक्ष पधारे। अन्तिम तीर्थंकर, वर्तमान शासनरधिपति श्री महावीर भगवान पावापुरी से अलपद को प्राप्त हुए तथा तीनों लोकों में प्रधान, तीन लोकों के गुरु अजितनाथजी, संभवनाथजी, अभिनन्दनजी, सुमतिनाथजी, पद्मप्रभजी, सुपार्श्वनाथजी, चन्द्रप्रभजी, पुष्पदन्तजी, शीतलजी, श्रेयांसजी, विमलजी, अनन्तजी, धर्मनाथजी, शान्तिनाथजी, कुन्थुनाथजी, अरनाथजी, मल्लिनाथजी, मुनिसुव्रतजी नमिनाथजी व पार्श्वनाथजी सम्मेदाचल के शिखर से मुक्ति धाम को प्राप्त हुए। इन २४ तीर्थंकरों की हम वन्दना