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________________ ३८६ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ-( चैत्र-सित-पक्ष-फाल्गुनि-शशांकयोगे-त्रयोदश्याम् दिने ) चैत्रमास शुक्लपक्ष तेरस के दिन जब उत्तरा-फाल्गुनी नामक चन्द्र योग था ( सौम्येषु ग्रहेषु स्व-उच्चस्थेषु-जज्ञे ) शुभग्रह अपने-अपने उच्चस्थान पर स्थित थे, ( शुभलग्ने ) शुभलग्न था ( शशाङ्के हस्ताश्रिते ) चन्द्रमा हस्त नक्षत्र पर स्थित था तथा ( चैत्र ज्योत्स्ने ) चैत्रकी चांदनी छिटकी हुई थी-तभी शुभ बेला में महावीर भगवान् का जन्म हुआ था ( चतुर्दशी दिवसे) चतुर्दशी के दिन ( पूर्वाह्ने ) प्रात:काल में ( विबुधेन्द्राः ) देवोंके इन्द्र-देवेन्द्रों ने ( रत्नघटै: अभिषेकं चक्रुः ) इन्द्रों ने रत्नमय कलशों से उन वीर जिन का अभिषेक किया था। भावार्थ चैत्र मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी/तेरस, उत्तराफाल्गुनी चन्द्रयोग में, जब शुभ व उच्च ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान पर स्थित थे, लग्न भी शुभ, चन्द्रमा हस्तनक्षत्र पर स्थित था कुबेर के द्वारा रची गई सुन्दर कुण्डपुर नगरीमें जब चैत्र माह की चाँदनी बिखर रही थी, शुभ बेला में वर्तमान चौबीसी के अन्तिम तीर्थकर भगवान वर्धमान का जन्म हुआ था। चतुर्दशी के दिन प्रात:काल की मंगल बेला में देवेन्द्रों ने १००८ विशाल रत्नमयी मंगल कलशों से सुमेरुपर्वत की पाण्डुक-शिला पर उन वर्धमान जिनेन्द्र का जन्म-अभिषेक कर उस जन्माभिषेक के द्वारा जन्मकल्याणक का अनुष्ठान किया। भुक्त्वा कुमारकाले त्रिंशद्वर्षापयनंत गुणराशिः। अमरोपनीतभोगान्सहसाभिनिबोधितोऽन्येयुः ।।७।। नानाविषरूपचितां विचित्रकूटोच्छ्रितां मणिविभूषाम् । चन्द्रप्रभाख्यशिविकामारुह्य पुराद्विनिः क्रान्तः ।।८।। मार्गशिरकृष्णदशमी हस्तोत्तर मध्यमाश्रिते सोमे । षष्ठेन त्वपराहे भक्तेन जिनः प्रवनाज ।।९।। अन्वयार्थ—जो वर्धमान स्वामी ( अनन्त-गुण-राशि: ) अनन्त गुणों के राशि स्वरूप अर्थात् अनन्त गुणों के स्वामी थे वे वीर प्रभु ( कुमारकाले ) १. तिलोयपण्णसि-४/५२६-५४९ हरिवंशपुराण-६०/१८२.२०५ के अनुसार चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र पर स्थित था तब भगवान वीर का जन्म हुआ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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